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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ बुद्ध की मूर्ति के समक्ष दासियों (सर्वोत्कृष्ट एवं महार्ण्य वस्त्र) सैकड़ों (पूर्व से कुछ कम महाय॑) और हजारों रेशमी वस्त्र भेंट किये।
निरन्तर २१ दिनों तक इसी प्रकार राजकीय ठाट-बाट के साथ यह महोत्सव चलता रहा । प्रीतिभोज के अनन्तर धार्मिक सम्मेलन का प्रायोजन किया गया। उसमें सभी धर्मों और विभिन्न धर्मों की शाखाओं एवं उपशाखाओं के विद्वानों को आमन्त्रित किया गया। चीनी यात्री हुएनत्सांग को २१ दिनों तक प्रतिदिन किये जाने वाले धार्मिक सम्मेलनों का हर्षवर्द्धन ने अध्यक्ष नियुक्त किया। सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने धर्म की विशेषता सिद्ध करने के प्रयास किये । हएनत्सांग ने सब की युक्तियों का खण्डन करते हुए कहा यदि कोई विद्वान् मेरी एक भी युक्ति को असत्य सिद्ध कर देगा तो मैं तत्काल अपना सिर काट कर उसे भेंट कर दूंगा। उसकी उस चुनौती को ५ दिन तक किसी ने स्वीकार नहीं किया। उसके पश्चात् हीनयान के प्रमुखों ने हुएनत्सांग की हत्या करने का षड्यन्त्र रचा किन्तु हर्ष को पहले ही पता चल गया और उसने घोषणा करवा दी कि यदि किसी ने हुएनत्सांग को छूने का प्रयास किया तो उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया जायगा और यदि किसी ने हुएनत्सांग के विरुद्ध एक भी शब्द कहा तो उसकी जिह्वा काट ली जायगी। हर्ष की इस घोषणा से सभी हीन यानी विरोधियों ने इस सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया।
इस सम्मेलन के अन्तिम २१वें दिन रात्रि में जिस समय कि हुएनत्सांग के सभापतित्व में धर्म चर्चा चल रही थी, उस समय अचानक उस विशाल गुम्बज में आग लग गई। बड़ा कोलाहल हुना, सब इधर-उधर भागने लगे। उस समय एक युवक हाथ में शस्त्र लिये हर्षवर्द्धन की हत्या करने के लिये हर्षवर्द्धन की ओर झपटा । हर्ष तक पहुंचने से पहले ही उसे राजपुरुषों द्वारा पकड़ लिया गया। हपं के पूछने पर उस युवक ने स्वीकार किया कि विरोधी ब्राह्मणों ने उसे बहुत बड़ा प्रलोभन देकर आपकी (हर्ष की) हत्या करने के लिये प्रोत्साहित किया है। राजा भोज द्वारा प्रश्न किये जाने पर ५०० ब्राह्मण मुख्यों ने स्वीकार किया कि बौद्ध यात्री, बौद्ध धर्म और बौद्ध धर्मानुयायियों के प्रति प्रगाढ पक्षपात और शैवों वैष्णवों तथा अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति आपके घोर उपेक्षापूर्ण व्यवहार से तिरस्कृत एवं प्रपीडित हो हमने इस प्रकार का निश्चय किया है। चीनी यात्री हएनत्सांग के कथनानुमार राजा हर्ष ने षड्यन्त्र के मुख्य सूत्रधारों को दण्डित एवं ५०० ब्राह्मणों का अपन राज्य की सीमाओं से निष्कासित कर दिया।
हुएनत्सांग के इस विवरण में अपने धर्म के प्रति अन्धानुराग की गन्ध के साथ अतिशयोक्तियों एवं अतिरंजना का प्राभास होता है।
हर्ष का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण पुष्पभूति वंश का शनिशाली राज्य उसकी मृत्यु के बाद समाप्त हो गया।
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