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________________ ५१. ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास---भाग ३ करने के लिये बाध्य कर दिया था। मालवराज ने भी पुलकेशिन की अधीनता स्वीकार कर ली थी। ___ इस प्रकार उस समय की छोटी-बड़ी अनेक सत्तानों को अपनी पक्षधर बना कर पुलकेशिन ने अपनी.शक्ति को सुदृढ़ बना हर्षवर्द्धन के शक्तिसंचय के अनेक बड़ेबड़े स्रोतों को प्रायः अवरुद्ध सा कर दिया था। इसी कारण हर्ष को भारत में एक सार्वभौम सत्ता स्थापित करने के अपने लक्ष्य की पूर्ति में अन्य राजाओं का सहयोग प्राप्त न हो सकने के कारण अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। परन्तु उत्तरी भारत में हर्षवर्धन को अपने राज्य का विस्तार करने में पर्याप्त सफलताएं प्राप्त हुई और वह उत्तर का एक शक्तिशाली राजा बन गया। चीन की एन्साइक्लोपीडिया के निर्माता विद्वान मा-त्वान-लिन के उल्लेखानुसार हर्षवर्द्धन अपर नाम शीलादित्य (चीन में इसे शीलादित्य और मगधराज के नाम से ही अभिहित किया जाता था) ने ई० सन् ६४१ में "मगधराज' की उपाधि धारण की।' चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ई० सन् ६४३ में अपनी कामरूप की यात्रा के विवरण में लिखा है कि जब वह कामरूप देश के राजा भास्करवर्मन के निमन्त्रण पर कामरूप गया उस समय हर्षवर्द्धन-शीलादित्य-मगधराज कांगोदा और उड़ीसा पर विजय प्राप्त कर लेने के पश्चात् गंगा के तट पर अवस्थित 'राजमल' के समीप कजंगला में अपना शिविर डाले हुए था। __ इससे यह सिद्ध होता है कि हर्षवर्द्धन ने पूर्वी भारत में मुदूर तक अपनी विजय वैजयन्ती फहराई थी और शशांक की मृत्यु के पश्चात् संभवत: शशांक के सम्पूरणं राज्य पर अधिकार कर लिया था। हर्ष के राजसिंहासनारूढ़ होने से पूर्व ही उसे अनेक प्रापत्तियों ने प्रा घरा किन्तु वह धैर्य और साहस के साथ भारत में एक मार्वभौम सत्ता सम्पन्न केन्द्रीय सशक्त राज्य की स्थापना के लिये जीवन भर संघर्ष करता रहा। प्रतिकूल परिस्थितियों के उपरान्त भी वह अपने लक्ष्य से च्युत नहीं हुआ। वह समस्त भारत को एक ही सशक्त शासन के सूत्र में तो आबद्ध नहीं कर सका किन्तु यह एक स्फुट सत्य है कि वह उत्तर भारत के एक सशक्त राजा के रूप में लगभग तीन दशक से अधिक समय तक शासन करता रहा । रणचातुरी, मामिकता. माहित्य मेवा, शालीनता आदि उसके उत्कृष्ट गुण भारत के इतिहास में अंकित हैं। वस्तुतः वह एक महान् शासक था। चीन के सम्राट ने तीन बार (ई. सन ६४३, ६४५ और ६४७ में) बहुमूल्य भेट भेजकर हर्ष को सम्मानित किया। अन्तिम भेंट के कन्नोज पहुंचने से पूर्व ही हर्ष का देहावसान हो गया था। हर्ष जिस प्रकार तलवार चलाने में निष्णात था, उसी भांति लेखनकला, साहित्यसृजन-कला में भी पूर्णत: निष्णात था। उसकी राजसभा में वारण और १ हिस्ट्री एण्ड कल्चर ग्राफ इन्डियन पीपल, क्लासिकल एज, पृ० १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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