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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवतीं प्राचार्य ]
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हो सका । हर्षवर्द्धन के इस स्वप्न के पूर्ण न होने देने में सबसे बड़ा हाथ रहा बादामी के चालुक्य साम्राज्य का ।
बादामी का चालुक्य पुलकेशिन ईसा की ७वीं शताब्दी में ही ( ई. सन् ६१० के आसपास) राष्ट्रकूट वंशीय शक्तिशाली राजा अप्पायिक गोविन्द को जो कि दक्षिण विजय करता हुआ आगे बढ़ रहा था, भीमरथी नदी के उत्तर में हुई लड़ाई में पराजित कर एक शक्तिशाली राजा के रूप में उभर आया था ।
हर्षवर्द्धन एक विशाल साम्राज्य की स्थापना के अपने स्वप्न को पूरा करने के लिये जब दक्षिण - विजय के लिये दक्षिणापथ में बढ़ रहा था, उस समय पुल - केशिन द्वितीय ने एक विशाल सेना लेकर हर्षवर्द्धन की बढ़ती हुई सेनाओं को रोका। नर्मदा के तट पर हर्षवर्द्धन और चालुक्यराज पुलकेशिन द्वितीय की सेनाओं के बीच निर्णायक युद्ध हुआ । कड़े संघर्ष के पश्चात् हर्षवर्द्धन की पराजय हुई । पुलकेशिन ने हर्षवर्द्धन के अनेक हाथियों को पकड़ कर अपने अधिकार में कर लिया ।
हर्षवर्द्धन की इस पराजय के और अपने सैनिक अभियानों में सफल न होने के पीछे रहे कारणों पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता डॉ. के. ए नीलकण्ठ शास्त्री ने 'दक्षिण भारत का इतिहास' नामक अपने ग्रन्थ में लिखा है :
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"पुलकेशिन के सैन्यबल की प्रसिद्धि तथा उत्तर में हर्ष की बढ़ती हुई शक्ति ने एक-एक कर लाट, मालव तथा गुर्जर, सभी को पुलकेशिन की अधीनता स्वीकार करने को प्रेरित किया । इस तरह चालुक्य साम्राज्य की सीमा एक स्थान पर मही नदी का स्पर्श करती थी । जब हर्ष ने दक्षिण पर हमला किया तो पुलकेशिन ने उसका सामना किया और नर्मदा तट पर उसे बुरी तरह पराजित कर उसके अनेक हाथियों को पकड़वा लिया । हपको अपने विजयी जीवन में सिर्फ यहीं मुह की खानी पड़ी। ये सारी सफलताएँ पुलकेशिन को अपने शासनकाल के प्रथम तीन-चार वर्षों में ही मिल गयीं ।""
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यह तो इतिहास प्रसिद्ध ही हैं कि चालुक्यों का चाहे वे वातापी के हों चाहे वंगी के अथवा विजयनगरम् के, गुजरात के साथ पारस्परिक पूर्वजों के समय से ही प्रगाह सम्बन्ध रहा है। इस दृष्टि से भी प की महत्वाकांक्षाओं और बढ़ती हुई शक्ति को देख कर गुजरात के वल्लभी, लाट आदि राजाओं ने सम्भवतः चालुक्यराज पुलकेशिन द्वितीय की विजयिनी सेनाओं और अजेयता को देखकर हर्षवर्द्धन से अपनी रक्षा करने के लिये पुलकेशिन की अधीनता स्वीकार कर ली हो । अपने समय की शक्तिशाली राजसत्ताओं गंग, राष्ट्रकुट, कदम्ब ग्रादि राजवंशों पर पुलकेशिन द्वितीय ने विजय प्राप्त कर ली थी । एलिफेन्टा द्वीपस्थ मौर्या की राजधानी पुरी पर आक्रमण कर के पुलकेशिन ने मार्यो को भी अपनी आधीनता स्वीकार दक्षिण भारत का इतिहास डा० के० ए० नीलकण्ठ पृष्ठ १२५
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