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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ३ हो गयी है । उसकी खोज के लिये चारों ओर सैनिक टुकड़ियां भेजी गईं किन्तु अभी तक राज्यश्री नहीं मिली है।
हर्ष ने तत्काल भण्डी को राज्यवर्द्धन के साथ मालवराज पर आक्रमण करने के लिये गई सेना और अपनी सेना के साथ शशांक पर आक्रमण करने का आदेश दे स्वयं राज्यश्री की खोज में विन्द्याटवी की ओर द्र तवेग से बढ़ा । बड़ी खोज के बाद एक दिन हर्ष ने विन्द्याटवी में देखा कि राज्यश्री चिता में आग लगाकर उसमें प्रवेश करने को उद्यत है । हर्ष ने विद्यत्वेग से आगे बढ़कर राज्यश्री को चिताग्नि में प्रवेश करने से बचा लिया और उसको साथ लेकर गंगा तट पर अपने शिविर में लौटा।
बांण अपने विवरण को सहसा यहीं अधरा ही छोड़ देता है। इस प्रकार की स्थिति में हर्ष द्वारा प्रारम्भ किये गये अभियान से हर्ष को कौन-कौनसी उपलब्धियां हई, किन-किन राजाओं को जीता, इस विषय में सुनिश्चित एवं प्रामाणिक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
मंजश्री-मूलकल्प के एतद्विषयक उल्लेख से इतना अवश्य प्रकट होता है कि हर्षवर्द्धन ने शशांक की राजधानी पुण्ड पर आक्रमण किया। उस युद्ध में हर्ष ने शशांक को पराजित कर प्राज्ञा दी कि वह उसके राज्य से सदा के लिये बाहर चला जाय । अपने बड़े भाई राज्यवर्द्धन की विश्वासघातपूर्वक हत्या करने वाले शशांक को पराजित कर देने के पश्चात् भी हर्ष ने न तो उसे मारा और न बन्दी ही बनाया, यह बात कहां तक विश्वसनीय है, कहा नहीं जा सकता । यह घटना ई० सन् ६०७६०८ के बीच के किसी समय की हो सकती है। किन्तु इसके पश्चात् ई० सन् ६३७-३८ के आसपास तक शशांक का बंगाल, दक्षिणी बिहार और उड़ीसा पर राज्य रहा। ई० सन् ६३७-६३८ में मगध में भ्रमण करते समय स्वयं हुएनत्सांग ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि शशांक ने गया के एक बौधि वृक्ष को काट दिया और इसके कुछ समय पश्चात् ही वह मर गया।
अपनी बहिन राज्यश्री के साथ हर्षवर्द्धन कन्नोज गया। वहां उसने कतिपय वर्षों तक अपनी बहन की पोर से कन्नोज राज्य के शासन भार को सम्हाला और इस प्रकार वह थानेश्वर प्रौर कनोज दोनों ही राज्यों पर शासन करता रहा। कुछ समय पश्चात् उसने अपने प्रापको कोज का राजा घोषित कर दिया और परम भट्टारक राणाधिराज का पर भी धारण किया। यह पहले बताया जा चुका है कि राज्यमन की मृत्यु का समाचार सुनकर हर्ष में भारत में एक सार्वभौम सत्तासम्पन्न साम्राज्य की स्थापना द्वारा भारत को एक सूत्र में प्राव करने का निश्चय किया था । उस निश्चय-पूर्ति के लिए हर्षबहन एक लम्बे समय तक प्रयत्न करता रहा । पूर्व और उत्तर मैं उसे पर्याप्त सफलताएँ मिली कि भारत में पूर्व से पश्चिम तक
और दक्षिण मे रत्तर तक एक ही सशक्त केन्द्रीय शासन की स्थापना के माध्यम से सम्पूर्ण भारत को शासन के एकसूत्र में बांधने का हर्षवर्द्धन का स्वन साकार नहीं
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