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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्त्ती प्राचार्य ]
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व्यक्त करते हुए हर्ष से प्राग्रह किया कि वह थानेश्वर के राजसिंहासन पर बैठे । किन्तु हर्ष ने अपने बड़े भाई के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि वह भी अपने ज्येष्ठ भ्राता के पदचिह्नों का अनुसरण कर संन्यस्त हो अध्यात्मसाधना में निरत हो जायगा ।
जिस समय दोनों भाई इस प्रकार वार्तालाप कर रहे थे, उसी समय कन्नौज के एक समाचारवाहक ने ग्राकर उन दोनों भाइयों को सूचना दी कि जिस दिन महाराजा प्रभाकरवर्द्धन के स्वर्गस्थ होने के समाचार कन्नौज पहुंचे उसी दिन मालवा के. राजा ने कन्नौज के महाराजा ग्रहवर्मन ( राज्यवर्द्धन के बहनोई) की हत्या कर दी. और महारानी राज्यश्री को बन्दी बना लिया । अब वह थानेश्वर पर श्राक्रमरण करना चाहता है ।
इस दुःखद समाचार को सुनते ही राज्यवर्द्धन १० हजार अश्वारोहियों की सेना ले मालवराज के साथ युद्ध करने के लिए प्रस्थित हुआ और उसने हर्ष को थानेश्वर - राज्य की रक्षा के लिये वहीं रखा । वायुवेग से आगे बढ़कर मालव नरेश की सेना पर भीषण श्राक्रमण किया। देखते ही देखते मालव सेना को नष्ट कर दिया ।
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मालव सेना पर इस विजय के पश्चात् गौड़ राजा शशांक ने विश्वासघात कर राज्यवर्द्धन की हत्या कर दी। यह हर्षवर्द्धन पर अन वज्रपात था ।
हर्षचरित्र में महाकवि बांरण के उल्लेखानुसार इस महाशोकप्रद समाचार के सुनते ही हर्ष के क्रोध का पारावार न रहा। उसने शपथपूर्वक प्रतिज्ञा की कि यदि वह कुछ ही दिनों में पृथ्वी को गौड़विहीन नहीं कर सका तो अग्निप्रवेश कर लेगा । उसने उसी समय पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक समस्त भारत पर विजय प्राप्त करने का निश्चय किया और अपने मन्त्रियों को आदेश दिया कि वे सब राजाओं को इस प्रकार का संदेश भेज दें कि ये सब उसकी (हर्ष की ) अधीनता स्वीकार करें अन्यथा शीघ्र ही युद्ध के लिए सन्नद्ध हो जायं । तदनन्तर हर्षवर्द्धन एक बड़ी सेना लेकर सर्वप्रथम गौड़राज शशांक से प्रतिशोध लेने और तदनन्तर चारों दिशाओं पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये प्रस्थित हुआ ।
हर्षवर्द्धन को मार्ग में प्राग्ज्योतिष ( प्रासाम) के राजा कुमार अपर नाम भास्करवर्मन का दूत मिला और उसने अपने स्वामी की ओर से यह प्रस्ताव किया कि वे दोनों परस्पर एक दूसरे की समय-समय पर सहायता करें। हर्ष ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया और अपनी सेना के साथ आगे बढ़ा । कुछ दिनों तक कूच पर कूच करते आगे बढ़ते समय हर्ष को भण्डी मिला जो राज्यवर्द्धन की सेना, शत्रुसेना के बन्दियों, मालवराज की सेना से लूट में प्राप्त शस्त्रास्त्रादि सामग्री और मालवराज के छत्र, चामर, गज, अश्व और घनागार आदि लिए थानेश्वर की ओर लौट रहा था । हर्ष को उससे राज्यश्री के सम्बन्ध में यह सूचना मिली कि बन्दीगृह से मुक्त की जाने पर राज्यश्री अपनी परिचारिकाओं के साथ विन्द्याटवी में प्रविष्ट
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