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________________ हर्षवर्द्धन-अपर नाम शीलादित्य । वीर निर्वाण की बारहवीं शताब्दी में स्थानेश्वर और कन्नौज का महाराजा हर्षवर्द्धन महान् प्रतापी और भारतीय इतिहास में बड़ा ही यशस्वी राजा हा है। हर्ष स्वयं बड़ा विद्वान, यशस्वी साहित्य-निर्माता, विद्वानों का समुचित समादर करने वाला, साहसी योद्धा रणनीति में विशारद और शांति का भी पुजारी था। अपनी मातृभूमि से विदेशी हरणों के शासन को सदा-सर्वदा के लिये समाप्त कर देने के अपने जीवन के लक्ष्य की पूर्ति हेतु जो सफल अभियान हर्ष ने प्रारम्भ किया, उससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उसका न केवल अन्तस्तल अपितु रोम-रोम देशप्रेम के प्रगाढ़ रंग में रंगा हया था। सब धर्मों को वह समान दृष्टि से देखता था । बौद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्ष को बुद्ध का परम भक्त और कट्टर बौद्ध धर्मानुयायी बताता है, तो दूसरी ओर हर्षवर्द्धन के शासनकाल की उसकी मुद्राएँ उसे शिव का भक्त - परम शैव सिद्ध करती हैं। तीसरी ओर जैन साहित्य में "भक्तामर" नाम से प्रसिद्ध आदिनाथ भगवान् के स्तोत्र के रचयिता प्राचार्य मानतुंग द्वारा निर्मित इस स्तोत्र निर्माण की घटना का हर्ष के साथ सम्बन्ध जोड़कर हर्ष को जैन धर्म के प्रति विशिष्ट अनुराग रखने वाला बताया गया है । सब धर्मों के अनुयायी हर्ष को अपने-२ धर्म का अनुयायी बताते हैं तो इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि राजा हर्ष सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखता था। हर्षवर्द्धन के जीवनवृत्त पर विशद प्रकाश डालने वाले मुख्य रूप से दो स्रोत हैं । एक तो है हर्ष के परमप्रीतिपात्र महाकवि बाणभट्ट द्वारा रचित हर्ष चरित्र और दूसरा स्रोत है चीनी यात्री हेनत्सांग द्वारा लिखे गये हर्ष सम्बन्धी विवरण । चीनी यात्री ह्वेनसांग के हर्षसम्बन्धी विवरणों को पढ़ने से साधारण पाठक को भी सहज ही यह प्राभास हो जाता है कि उनमें उसने हर्ष का बौर धर्म के अनन्यभक्त के रूप में एक प्रतिरंजित चित्र प्रस्तुत किया है। महाकगि बाण के उल्लेखानुसार स्थावीश्वर (पानेश्वर) राज्य का नाम किसी नगर के नाम पर प्रचलित हुमा, जो श्रीकण्ठ नामक देश में प्रवस्थित था। पानेश्वर राग्य का संस्थापक प्रावि पुरुष पुष्पभूति था। थानेश्वर राज्य की प्राचीन राजकीय सीलों (मुहरों) और प्राचीन अभिलेखों के प्राधार पर इतिहासपियों में इस राजवंश की जो पुष्पभूति के उत्तरवर्ती काल की राणावली तयार की है। यह इस प्रकार है : (१) महाराणा भरपर्बम, उसकी रामी पत्रिणी वैधी । (२) महाराणा राज्यवर्धन, सकी रानी धारा वैवी । (३) महाराजा भावियबर्द्धन, एसकी रानी महासेना=गुप्ता वैषी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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