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बत्तीस (३२) युगप्रधानाचार्य श्री पुष्यमित्र
जन्म
दीक्षा
सामान्य साधु पर्याय
प्राचार्य काल
स्वर्ग
सर्वायु
वीर निर्वारण सम्वत् १९५२
दीर निर्वारण सम्वत् १९६०
वीर निर्वाण सम्वत् ११६० मे ११६७ तक !
वीर निर्वाण सम्वत् ११३७ से १२५० तक |
वीर निर्वाण सम्वत् १२५०
६८ वर्ष
युग प्रधानाचार्य पुष्यमित्र प्राचीनकाल में एक महान् प्रभावक प्राचार्य हुए हैं। यह एक दुर्भाग्य की बात है कि युगप्रधानाचार्य परम्परा के प्राचार्यों के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में वर्तमान काल में सामान्यतः उपलब्ध साहित्य में कोई अधिक आधिकारिक जानकारी नहीं मिलती ।
'तित्थोगा लिपइण्णय' के प्रकाश में आने के पश्चात् इस परम्परा के कतिपय प्राचार्यों के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आये हैं । इस ग्रन्थ में इस परम्परा के आचार्यों के सम्बन्ध में जो उल्लेख हैं, उन पर विचार करने मे यह स्पष्टतः प्रतीत होता है कि इस परम्परा का अनेक शताब्दियों तक जैन जगत् में एक परम प्रामाणिक परम्परा के रूप में सर्वांगीण वर्चस्व रहा है ।
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'तित्थोगालि पइण्णय' के उल्लेखों के अनुसार प्राचार्य पुष्यमित्र ८४००० पदों वाले सर्वांगपूर्ण व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती सूत्र ) के अन्तिम धारक हुए हैं । वे महान् चिन्तक और विशुद्ध श्रमणाचार की रक्षा में निपुण थे ।
आपके स्वर्गस्थ होते ही ८४००० पदों वाला गुरणों से प्रोतप्रोत पांचवां अंग व्याख्या प्रज्ञप्ति रूपी कल्पवृक्ष सहसा संकुचित हो गया और इसके गुण रूपी
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