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श्रमरण भगवान् के ३८वें पट्टधर श्राचार्य श्री भीम ऋषि
वीर नि. सं. १९६०
वीर नि. सं. १२११
वीर नि. सं. १२३४
वीर नि. सं. १२६३
५१ वर्ष
२३ वर्ष
२६ वर्ष
पूर्ण साधु-पर्याय
५२ वर्ष
पूर्ण आयु
१०३ वर्ष
प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल के चरम तीर्थङ्कर भगवान् महावीर के ३७व पट्टधर प्राचार्य श्री देवऋषि के स्वर्गस्थ होने पर वीर नि. सं. १२३४ में मुनि पुंगव श्री भीम ऋषि को वीर प्रभु के ३८वें पट्टधर के रूप में चतुविध संघ द्वारा प्राचार्य पद पर अधिष्ठित किया गया ।
जन्म
दीक्षा
प्राचार्य पद
स्वर्गारोहण
गृहवास पर्याय
सामान्य साधु पर्याय
प्राचार्य - पर्याय
अपने प्राचार्यकाल में शिथिलाचार परायणा चैत्यवासी परम्परा के एकाधिपत्य, सार्वत्रिक प्रचार-प्रसार एवं काल प्रभाव से बढ़ते हुए वर्चस्व के उपरान्त भी भगवान् महावीर की विशुद्ध मूल श्रमण परम्परा की क्षीण धारा को अपने तप त्याग के बल पर प्रवाहित रखते हुए उसे विलुप्त होने से बचाया । अपने २६ वर्ष के प्राचार्यकाल में श्राचार्य श्री भीम ऋषि ने ""था नाम तथा गुणाः' की कहावत को चरितार्थ कर जिनशासन की महती सेवा की ।
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