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________________ ४६८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--- भाग ३ क्षत्रचूड़ामणि एक उच्च कोटि का नीति काव्य है जिसमें सरस सूक्तियां और हृदयस्पर्शी उपदेश हैं। गद्य चिन्तामणि एक गद्य काव्य है। इसकी भाषा प्रौढ़ और कुछ जटिल है । इसमें दिये गये उपदेश के नीति-वाक्य बड़े ही सरस एवं चित्ताकर्षक हैं । विद्वान कवि वादीभसिंह ने अपने गुरु के नामोल्लेख के साथ अपना परिचय देते हुये गद्य चिन्तामरिण में लिखा है : श्री पुष्पसेन मुनिनाथ इति प्रतीतो दिव्यो मनुर्ह दि सदा मम संविदध्यात् । यच्छक्तित:प्रकृति मूढमतिर्जनोऽपि वादीभसिंह मुनि पुंगवतामुपैति ।। अर्थात--पुष्पसेन नामक प्राचार्य मेरे गुरु हैं। उनमें ऐसी दिव्य शक्ति है कि उनकी उस शक्ति के प्रताप से मेरे जैसा बुद्धिहीन व्यक्ति भी वादीभसिंह प्राचार्य बन गया। आचार्य पुष्पसेन को मल्लिषेण प्रशस्ति में अकलंक का गुरु भ्राता बताया गया है इससे यह सिद्ध होता है कि वादीभसिंह के गुरु पुष्पसेन और महान् विद्वान् आचार्य अकलंक समकालीन विद्वान् थे। . जहाँ तक वादीभसिंह के समय का प्रश्न है, कहीं इनके निश्चित समय का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। इनका जिनसेनाचार्य ने आदिपुराण में और पार्श्वनाथ चरित्र के रचनाकार वादीराज सूरि ने स्मरण किया है। जिनसेनाचार्य का समय ई० सन् ८३७ है और वादीराज सूरी का समय ई. . सन् १०२५ है । इससे यह तो निश्चित रूप से सिद्ध हो जाता है कि वादीभसिंह ईसा की आठवीं शताब्दी से पूर्व के विद्वान् थे। तिरु ज्ञानसम्बन्धर और तिरु अप्पर के प्रकरण में यह बताया जा चुका है कि पल्लवराज महेन्द्रवर्मन प्रथम और सुन्दरपाण्ड्य यह सब समकालीन थे। वहां यह भी बताया जा चुका है कि कांचीपति पल्लवराज महेन्द्रवर्मन प्रथम का शासन काल ई. सन् ६०० से ६३० तक का है। वादीभसिंह भी अप्पर और ज्ञानसम्बन्धर के समकालीन विद्वान् थे अतः इनका समय भी स्वतः ईसा की सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध हो जाता है। . प्राचार्य वादीभसिंह का शैव संत ज्ञानसम्बन्धर और अप्पर के साथ जो वादविवाद हुआ उसका क्या निर्णय रहा इस सम्बन्ध में आज तक कोई तथ्य प्रकाश में नहीं पाया है। आशा है इतिहास के विद्वान् इस ओर अग्रेतर शोध कर इस पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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