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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास---भाग ३ (४) अरैक्कुरैइल्लार कुरुवदु प्रांगु गुनम् अल्ल ।
कंडीर".........""तिरुक्काटुप्पपल्ली ।। अर्थात्-कमर पर वस्त्र न पहनने वाले जैनों की बातें न तो गुणयुक्त हैं और न उपयोगी ही, यह बात सभी लोग अच्छी तरह से जान लें।
(५) इलै मरुदेअल्गाग नारुम हरु तुवरकायोडु । (अदररक) सुक्कु तिन्नुम निलै अमन्दोरै नींगी निन्रु"
(तिरुमगेल पदीकम्) अर्थात्-मेंहदी लगाकर सुन्दर बनाये हए हाथों में रखे अदरक एवं सुपारी की कतलियों से युक्त पान खाने वाले इन जैन एवं बौद्ध मुनियों से सदा दूर ही रहें।
(६) तुडुक्कुडै कैयरुम साक्कीयरुम-साक्कीयरुम जातियिन (सातियिन) नींगिय प्रवत्तवत्तवर-तिरुनल्लारु पदीकम ।
(अस्पष्ट) (७) मासेरिय उड्ल समन् गुरुक्कल । अर्थात् - ये मैले शरीर वाले जैन मुनि गुरु कैसे हो सकते हैं । (८) वेरवन्दूर मासूरदर वैइलीनरु उललवर-"तिरु नन्नामले"
अर्थात्-पसीने से तर-बतर मैले शरीर वाले जैन मुनि गर्मी में इधर से उधर भटकते हैं। (९) मंजगंल समन् मन्डकरियर गुन्डर गुणमिलिगल
"तिरु विलीमिलल"
अर्थात्-ये जैन मुनि भिक्षापात्र धारण करने वाले गुण्डे हैं। ये. लोगों को कुचक्र में फंसाने के लिये और सम्मोहित करने के लिये इधर-उधर घूमने वाले हैं।
(१०) मत्तमली सित्तर इरैमदी इल्ला समनर-"तिरुनैदानम"
अर्थात्-मद में मतवाले (घमंड में चूर) ये जैन मुनि --- "भगवान् हैं"-इस भावना से कोसों दूर हैं, अर्थात् भगवान् के अस्तित्व को नहीं मानने वाले हैं।
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