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________________ देला महत्तर (देला सूरि) विक्रम की ७वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थ भाग में और वीर निर्वाण की ११वीं शताब्दी में देला सूरि महत्तर नामक एक महान प्राचार्य हर हैं। ये जिन शासन प्रभावक महावादी और विद्वान् मुनिप श्री सूराचार्य के शिष्य तथा दुर्गस्वामी और "उपमिति भवप्रपञ्च कथा" नामक महान् आध्यात्मिक ग्रन्थ के रचनाकार श्री सिर्षि के गुरु थे । श्री सिद्धर्षि के उल्लेखानुसार ये निवृत्ति कुल के प्राचार्य थे। ये ज्योतिषशास्त्र के अपने समय के आधिकारिक विद्वान थे। निवृत्ति कूल की विशेषता है कि इसमें अविच्छिन्न अनेक पट्रपरम्पराओं तक उच्चकोटि के विद्वान और जिनशासन प्रभावक प्राचार्य होते रहे । देलासूरि महत्तर ने लाट प्रदेश में अनेक वर्षों तक विचरण कर अनेक भव्यों को प्रतिबोध देते हुए जैन धर्म का उल्लेखनीय प्रचार-प्रसार किया। इनके अनेक शिष्यों में से दुर्ग स्वामी और सिद्धर्षि इन दो विद्वान् शिष्यों ने निवृत्ति कुल की कीत्ति दिग्दिगन्त में प्रसृत कर दी। दुर्गसूरि अपने गृहस्थ जीवन में विपुल सम्पदाओं के स्वामी थे। देलाचार्य के उपदेश सुनकर इन्हें संसार से विरक्ति हो गई और उन्होंने तत्काल युवावस्था में ही स्त्री-परिवार और अपार सम्पदा का परित्याग कर देलाचार्य के पास श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली। ये सिषि के ज्येष्ठ गुरुभ्राता थे। सिषि ने इनका सदा गुरु के समान सम्मान किया। अनेक वर्षों तक संयम की पालना के साथ-साथ भव्यों को धर्ममार्ग पर आरूढ़ एवं स्थिर करते हुए आपने जिनशासन की उल्लेखनीय सेवा की। - उच्चकोटि की विदुपी साध्वी गणा आपकी ही शिष्य थी जिसने सिद्धर्षि की अमर आध्यात्मिक कृति 'उपमिति भव प्रपञ्च कथा' की प्रथम प्रति का प्रतीव सुन्दर एवं शुद्ध रूप में आलेखन किया। अन्त में संल्लेखना-सन्थारा पूर्वक आपने भिन्नमाल नगर में समभाव एवं समाधि के साथ स्वर्गारोहण किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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