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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ४५३ तेवारम् के माध्यम से तिरु ज्ञानसम्बन्धर और तिरुअप्पर ने जैन श्रमणों के प्रचण्ड विरोध के साथ उनके विरुद्ध जन-जन के मन में जिस प्रकार घोर घणा फैलाने के प्रयास किये, उनसे भी अनायास अतीत में किये गये उन अत्याचारों की विभीषिकाओं के रोमांचकारी दृश्य हमारे सामने उपस्थित हो जाते हैं, जो अप्पर आदि शैव सन्तों द्वारा जैनों के विरुद्ध फैलाई गई तीव्र घणा के परिणामस्वरूप शैवों द्वारा तमिलनाड में जैनों पर किये गये। जैनों के विरुद्ध घणा फैलाने वाले तेवारम् के उन पदों पर आगे दिये जाने वाले ज्ञानसम्बन्धर के परिचय में प्रकाश डालने का प्रयास किया जायगा। __ शैव साहित्य में उपलब्ध इस विषयक अधिकांश विवरण चमत्कार प्रदर्शन की दिशा में अतिशयोक्तियों और उपमालंकारों से अोतप्रोत है। अधिकांशतः प्रशिक्षित अथवा अर्द्धशिक्षित भक्त समुदाय के मानस पर अपने धर्म की एवं धर्मगुरुओं की महानता की छाप अंकित करने के लिए उन विवरणों में चमत्कारपूर्ण अलंकारिक अतिशयोक्तियों को प्रमुख स्थान दिया गया है । मदुरा के स्थलपुराण के आनेमलेइ, नागमलेइ और पशुमलेइ ये तीन विवरण इस दृष्टि से पठनीय एवं मननीय हैं, जो इस प्रकार हैं : मदुरा नगर के पास उपर्युक्त तीन नामों को तीन पहाडियां हैं, जिनका प्राकार ध्यानपूर्वक देखने पर क्रमश: हाथी, नाग और गाय के आकार से मिलता-जुलता प्रतीत होता है । यह कहने की तो कोई आवश्यकता नहीं कि क्रमशः हाथी नाग और गाय के आकार की मदुरा के पास-पड़ोस की ये तीनों पहाड़ियां पुरातन एवं प्रकृति की कृतियां हैं। किन्तु स्थल पुराण में इन पहाड़ियों को उपरिवणित शैव-जैन संघर्ष काल की शैवों के चमत्कार से उत्पन्न हुई पहाड़ियां बताया गया है। प्रानैमलेइ पहाड़ी के सम्बन्ध में स्थलपुराण में उल्लेख है कि एक बार कंजीवरम् के जैन श्रमणों ने मदुरा के निवासियों को जैन धर्मावलम्बी बनाने के लिये अपने काले जादू के प्रभाव से एक अति विशाल पर्वताकार हाथी बनाकर पूरे मदुरा नगर को धूलिसात् करने के लिये मदुरा की ओर भेजा । मदुरा के राजा ने अपनी और अपने नगर की रक्षा के लिए शिव से प्रार्थना की। शिव ने तत्काल वहां प्रकट हो एक ही बारण के प्रहार से उस हाथी को मारकर धराशायी बना दिया। वही निष्प्राण हुअा हाथी पानैमलेइ पहाड़ी के रूप में मदुरा के पार्श्व में आज भी विद्यमान है। अपने प्रथम काले जादू को इस प्रकार धराशायी हुप्रा देख उन जैन साधुओं ने अपने काले जादू से एक अति विशाल काला विषधर बनाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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