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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास... भाग ३
शैव साहित्य में उपलब्ध इन विवरणों पर विचार करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि इन सामूहिक संहार और बलात्धर्मपरिवर्तन की घटनाओं से पूर्व जैन धर्म संख्या, क्षेत्र विस्तार, वर्चस्व सम्मान आदि सभी दृष्टियों से तमिलनाड़ का एक शक्तिशाली और बहुजनसम्मत प्रमुख धर्म था। संक्षेप में यदि यह कह दिया जाय कि उस समय तमिलनाड़ की भूमि में जैन धर्म की जड़ें बहुत गहरी पहुंच गई थीं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पेरियपुराण में वर्णित जैन धर्मावलम्बियों की तमिलनाड में हुए सामूहिक संहारों और बलात्धर्मपरिवर्तन से पूर्व की स्थिति की तुलना में वहां जैनों की वर्तमान स्थिति पर विचार करें तो प्रत्येक विचारक को दोनों में प्राकाश-पाताल जितना अन्तर दृष्टिगोचर होगा। कहां तो सामूहिक संहार से पूर्व तमिलनाड में जैनों की अगणित संख्या, और कहां आज तमिलनाड़ के मूल निवासी जैनों की १४ हजार जैसी नगण्य संख्या और वह भी अन्यत्र कहीं नहीं, केवल नार्थ प्राकट जिले में । इस पर से प्रत्येक निष्पक्ष विचारक स्वतः इस निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि वहां जैनों का संहार वास्तव में इतना भीषण एवं हृदय विदारक था जिसके सामने कोई भी शैव साहित्य में किया गया इस सम्बन्धी विवरण फीका ही लगेगा । यदि ऐसा नहीं होता तो शताब्दियों से गहरी जड़ जमाया हुआ सर्वाधिक लोकप्रिय और वहुजन सम्मत जैन धर्म अपने सुदृढ समझे जाने वाले गढ़ मदुरा एवं कांची से, इस प्रकार लुप्त नहीं हो पाता।
धर्मान्धता से उन्मत्त लोगों द्वारा किये गये अपने प्रतिद्वन्द्वी धर्म के अनुयायियों के इस प्रकार के भीषण सामूहिक नरसंहार के विवरण इतिहास के पत्रों में
आज भी उपलब्ध हैं । प्रांध्रप्रदेश में श्रीशैलम पर अवस्थित मल्लिकार्जन मन्दिर के मुख्य मण्डप के दक्षिणी एवं वाम पार्श्व के स्तम्भों पर संस्कृत भाषा में उम्र कित सम्वत् १४३३ की माघ कृष्णा चतुर्दशी, सोमवार के शिलालेख में श्वेताम्बर साधुओं के भीषण संहार का विवरण आज भी देखा व पढा जा सकता है । उस शिलालेख में लिंगा नामक एक वीर शैवों के नायक द्वारा मन्दिर को की गई अनेक भेंटों के विवरण के साथ उसकी इस बात के लिये प्रशंसा की गई है कि उसने (अनेक) श्वेताम्बर साधुनों के सिर अपनी तलवार से काट कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया । नायक लिंगा द्वारा किये गये श्वेताम्बर साधुओं के नृशंस संहार को उक्त शिलालेख में एक पवित्र कार्य बताया गया है।'
इससे ऐसा आभास होता है कि तिरु ज्ञान सम्बन्धर और तिरु अप्पर के तत्वावधान में तमिलनाड में शासकों की सहायता से जो जैनों का सामूहिक संहार किया गया था, उसी से प्रेरणा लेकर वीर शैवों के मुखिया लिंगा ने भी अपनी तलवार से श्वेताम्बर जैन साधुओं के सिर काटे हों। १ एपिग्राफिका इन्डिका, जिल्द ५ पीपी १४२ एफ. एफ.
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