SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ४७६ पेरियपुराण, स्थलपुराण आदि शैव साहित्य में तमिलनाड़ से जैनधर्म को समूल उखाड़ फेंकने के लिये शैवों द्वारा किये गये इस धार्मिक अभियान की सफलता का श्रेय तिरु ज्ञानसम्बन्धर, तिरु अप्पर, सुन्दर पाण्ड्य की रानी और उसके प्रधानमन्त्री को दिया गया है। शैव सन्तों ने, मुख्यतः ज्ञानसम्बन्धर ने अपने इस धार्मिक अभियान में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सहायता देने वाली सुन्दर पाण्ड्य की रानी को और सुन्दर पाण्ड्य के प्रधानमंत्री को ६३ भहान् शैव सन्तों की पंक्ति में प्रमुख स्थान दिया है। तिरु ज्ञानसम्बन्धर के चमत्कारों से प्रभावित सुन्दर पाण्डय और तिरु अप्पर से प्रभावित हुए पल्लवराज महेन्द्रवर्मन की सहायता से लगभग एक ही समय में शवों द्वारा जैन श्रमणों एवं जैन धर्मानुयायियों का मदुरा और कांची में जो सामूहिक संहार एवं बलात् सामूहिक धर्म परिवर्तन किया गया तथा जैनों के मन्दिरों, मठों, वसदियों एवं अन्यान्य धार्मिक केन्द्रों को नष्ट-भ्रष्ट किया गया और जैनधर्मावलम्बियों पर और भी अनेक प्रकार के अत्याचार किये गये, इस सब घटनाचक्र को केवल किंवदन्तियां अथवा शैव पुराणकारों की कोरी कल्पना की उड़ान अथवा अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण मानने से इन्कार करते हुए डा० विन्सेन्ट स्मिथ ने इन विवरणों को ऐतिहासिक तथ्य प्रकट करने वाले विवरण माना है। इन घटनाओं को ऐतिहासिक घटनाएं मानने के अपने अभिमत की पुष्टि में डा० विन्सेन्ट स्मिथ ने मदुरा के विशाल मीनाक्षी मन्दिर की दीवारों पर चित्रों के रूप में प्रस्तुत किये गये इन घटनाओं के विवरणों को प्रबल प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है । मदुरा के मीनाक्षी मन्दिर की दीवारों पर और दक्षिण के बड़ेबड़े मन्दिरों को दीवारों पर उन अत्याचारों की स्मृति दिलाने वाले चित्रों को डा० विन्सेन्ट स्मिथ ने इस तथ्य की सबल साक्षी माना है कि शव साहित्य में उपलब्ध मदुरा और कांची में शैवों द्वारा किये गये जैनों के संहार के विवरण वस्तुतः ऐतिहासिक विवरण हैं। डा० विन्सेन्ट स्मिथ के इस अभिमत को उद्धत करते हुए एस० कृष्णस्वामी अय्यंगर ने अपने इतिहास ग्रन्थ सम कन्ट्रीब्यूशन्स आफ साउथ इंडिया टू इंडियन कल्चर के चैप्टर १५ में लिखा है 1. Both the queen and the minister are counted among the sixty three canonical devotees. (सम कन्ट्रीव्य शन्स आफ साउथ इंडिया टू इंडियन कल्चर, कृष्ण स्वामी अय्यंगर एम. ए. पी.-एच. डी. लिखित चैप्टर १३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy