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श्रमरण-वेष-शास्त्र एवं प्राचार-विचार ]
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इस नालडियार की रचना के सम्बन्ध में परम्परा से यह धारणा अथवा मान्यता चली आ रही है कि अपने क्षेत्रों में दुष्काल की स्थिति उत्पन्न हो जाने पर ८००० जैन श्रमण, जब तक उनके क्षेत्रों में दुष्काल का प्रभाव कम नहीं हुआ तब तक पाण्ड्य राज्य की राजधानी में रहे । दुष्काल की समाप्ति के पश्चात् जब उनके क्षेत्रों में पूनः सभी भांति की सूखद स्थिति उत्पन्न हो गई तो वे ८ हजार जैन साधु अपने प्रदेश की ओर लौटने के लिए उद्यत हुए।
पाण्ड्यराज उन विद्वान जैन साधुओं की सत्संगति से बड़ा प्रभावित हो चुका था और अब वह इस प्रकार के महापुरुषों की सत्संगति से वंचित नहीं रहना चाहता था, अतः जब उसे ज्ञात हुआ कि वे ८ हजार जैन श्रमण स्वदेश की ओर लौट रहे हैं तो पाण्ड्यराज ने उन्हें स्वदेश लौटने की अनुमति प्रदान नहीं की।
कतिपय दिनों के अन्तराल के पश्चात उन सभी श्रमणों ने अपने-अपने आसन के नीचे ताड़पत्र पर एक-एक पद्य लिखकर रख दिया और वे सब रात्रि के अंधकार में नगर से बाहर निकलकर स्वदेश की ओर प्रस्थान कर गये । उन श्रमणों के चले जाने की बात सुनकर पाण्ड्यराज बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने उसी समय जहां वे ८ हजार मुनि इतने समय तक रहे थे, उस स्थान की राज्याधिकारियों के द्वारा तलाशी ली, जिसमें उन्हें वे ८ हजार पत्र मिले जिन पर ८ हजार छन्दबद्ध पद्य लिखे हुए थे। उन पत्रों को लेकर राजपुरुष अपने स्वामी की सेवा में उपस्थित हुए। पाण्ड्य नरेश ने अपने अधिकारियों को आज्ञा प्रदान की कि उन सब पत्रों को तत्काल वैगाई नदी के प्रवाह में बहा दिया जाय ।
पाण्ड्य राज ने जब यह देखा कि ८ हजार पत्रों में से ४०० पत्र नदी के प्रवाह की विपरीत दिशा में बहने लगे और धीरे-धीरे नदी के उस तट की ओर बहते हुए, जिस तट पर कि राजा, राज्याधिकारी एवं प्रजाजन खड़े थे, भूमि पर प्रा लगे हैं, तो पाण्ड्यराज के आश्चर्य का पारावार नहीं रहा। उसने उन छंदों में किसी अलौकिक शक्ति का चमत्कार जान कर उन सब पत्रों को एकत्रित करवाया। तदनन्तर एक ग्रन्थ के रूप में उनकी अनेक प्रतियां लिखवाई। यही ग्रन्थ उन अज्ञातनामा श्रमणों द्वारा रचित नालडियार के नाम से प्रसिद्ध हया ।
नालडियार के संबंध में इस प्रकार की परंपरागत मान्यता के अतिरिक्त यह भी स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि ४०० छंदोबद्ध पद्यों और ४० अध्यायों वाले इस नालडियार ग्रन्थ के कतिपय छन्द मदुरा के अध्यात्मनिष्ठ श्रमणों द्वारा मदुरा पर कलभ्रों के शासनकाल में बनाये गये हैं । तीन शक्तिशाली राज्यों के स्वामियों के रूप में नालडियार के दो छन्दों (छन्द अथवा पद्य संख्या २०० से २६६) के कलभ्रों का उल्लेख इस बात की सबल साक्षी के रूप में विद्यमान है। इससे यह सिद्ध होता
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