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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
[ ४६६ उन्होंने चोल, पाण्ड्य और चेर इन तीन देशों अर्थात् इन तीन राज्यों को जीता था। पूर्वकालीन साहित्य में देश शब्द राज्य के अर्थ में भी प्रयुक्त होता रहा है।
उत्तरकालीन. तमिल कथासाहित्य से भी इस बात की पुष्टि होती है कि कलभ्रों ने चोल, चेर और पाण्ड्य इन तीनों ही शक्तिशाली राज्यों के राजामों को युद्ध में परास्त करके तमिल प्रदेश पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। कलभ्रों के आक्रमण के परिणामस्वरूप चोल राज्य पूर्णतः नष्ट हो गया और चोलों के द्वारा स्थापित सुन्दर प्रशासनिक व्यवस्था भी समाप्त हो गई। चोलों द्वारा संस्थापित प्रशासनिक व्यवस्था में स्थानीय स्वशासनाधिकार को बड़ा प्रोत्साहन दिया गया था पर साथ ही समग्र प्रशासनिक व्यवस्था पर केन्द्र का सुदृढ़ और सबल नियन्त्रः, भी रहता था।
कलभ्रों द्वारा तमिल प्रदेश पर किये गये इस अधिकार के सम्बन्ध में पेरियपुराण में जो विवरण दिया गया है, उसमें यह नहीं बताया गया है कि ये कलभ्र कौन थे और किस प्रान्त से प्रथवा किस राज्य से आये थे, इस सम्बन्ध में केवल इतना ही उल्लेख है कि वे लोग बडुग कर्णाटक लोग थे । इससे कुछ विद्वानों का यह अनुमान है कि कलभ्र कर्णाटक तथा आन्ध्र प्रदेश के निवासी थे ।
त्रिचनापल्ली जिले में, वर्तमान काल में मुत्ताराइर हैं, जो साधारण भूस्वामी हैं । आन्ध्र प्रदेश में वे मुत्तुराजक्कल के नाम से अभिहित किये जाते हैं। मेलुर ताल्लुक में जो मुत्ताराइन हैं वे अम्बलकारन कहे जाते हैं और उनकी जाति कल्लार है।
__ कलभ्रों के सम्बन्ध में इन सब तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर निश्चित रूप से तो यह नहीं कहा जा सकता कि वे प्रान्ध्र प्रदेश से पाये थे अथवा कर्णाटक प्रदेश से, अथवा वे तमिल प्रदेश के ही निवासी थे। पर यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कलभ्र दक्षिण भारत के ही निवासी थे।
इतिहास के कतिपय मूर्धन्य विद्वानों ने, दिगम्बर परम्परा के दर्शनसार नामक केवल ५१ गाथानों के छोटे से किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रन्थ की गाथा सं० २४ से २८ में वरिणत द्रविड़ संघ की वि० सं० ५२६ (वीर नि० सं० ६६६, तदनुसार ई. सन् ४६६) में मदुरा में उत्पत्ति की घटना को लेकर जैनों द्वारा हिन्दुनों की प्रतिस्पर्धा में नये साहित्यिक संगम की स्थापना की कल्पना कर ली है । इस कल्पना के माधार पर उन्होंने अपना अभिमत व्यक्त किया है कि इस प्रकार नये साहित्यिक संगम की स्थापना से हिन्दुओं और जैनों के हृदयों में परस्पर मनोमालिन्य उत्तरोत्तर अभिवृद्ध होता ही गया। मदुरा में द्रविड़ संघ के निर्माण के थोड़े समय पश्चात् ही कलभ्रों ने तमित प्रदेश के चोल, चेर और पाण्ड्य इन तीनों राजाओं के राज्यों पर आक्रमण कर उन पर अधिकार कर लिया।
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