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राजनैतिक स्थिति
कलभ्रों द्वारा सम्पूर्ण तमिल प्रदेश पर अधिकार 'पेरियपुराण', वेल्वीकुण्डी के दानपत्र और त्रिचनापल्ली से दो माइल की दूरी पर अवस्थित सेण्डलाई (पुराना नाम चेन्द्रलेधाई चतुर्वेद मंगलम्) के अभिलेख से, (जो टी. ए. गोपीनाथ द्वारा सेन तामिल के वाल्यूम सं०६ में प्रकाशित किया गया), बौद्ध ग्रन्थों में उपलब्ध कलभ्र कुल के अच्युतविक्रान्त सम्बन्धी उल्लेखों, तमिल साहित्य की उत्तरकालीन कथानों और तमिल के दसवीं शताब्दी के जैन वैयाकरण अमित सागर द्वारा कलभ्रों के सम्बन्ध में उद्धत किये गये गीतों से यह एक ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आता है कि ईसा की छठी तदनुसार वीर निर्वाण की ग्यारहवीं शताब्दी में विशाल सैन्यदल लेकर प्रचण्ड वेग से सम्पूर्ण तमिल प्रदेश को अाक्रान्त कर कलभ्रों ने पाण्ड्य, पल्लव, चोल और चेर - इन चार शक्तिशाली राज्यों को नष्ट कर दिया जो शताब्दियों से तमिल प्रदेश के विभिन्न विशाल भागों पर राज्य करते आ रहे थे ।
उन्हें पराजित कर सम्पूर्ण (तमिल) प्रदेश पर कलभ्रों ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। पेरिय पुराणकार ने आगे लिखा है कि उन कलभ्रों ने तमिल प्रदेश की धरती में आते ही जैनधर्म अंगीकार कर लिया। उस समय तमिलदेश में जैनों की संख्या अगणित (अपरिगणनीय) थी। जैनों के प्रभाव में आकर उन कलभ्रों ने शैव सन्तों का संहार करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने शैव देवताओं की पूजा बन्द करवा दी। यहां यह विचारणीय है कि अहिंसा के दृढ़ उपासक गिने जाने वाले जैनों ने कहीं किन्हीं का संहार जैसा कार्य किया हो, चाहे फिर उन्हें कितना ही राज्याश्रय प्राप्त रहा हो । सम्प्रति एवं खारवेल के समय भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता। इस सम्बन्ध में इतिहासज्ञों से आगे शोध की अपेक्षा है।
'पेरियपुराणम्' के इन विवरणों को पढ़ने से प्रत्येक पाठक को ऐसा आभास होता है-मानों स्वयं जैनों ने ही कलभ्रों को तमिल प्रदेश में इस अभिप्राय से
आमन्त्रित किया हो कि उनके धर्म की स्थिति तमिल प्रदेश में और अधिक सुदृढ़ एवं सशक्त हो जाय।
कलभ्रों द्वारा तमिल प्रदेश पर आक्रमण, मदुरा के पाण्ड्यराज की कलभ्रों द्वारा पराजय, चोल, चेर और पल्लवों के राज्यों पर कलभ्रों द्वारा अधिकार-इस पूरे घटनाचक्र के सम्बन्ध में उपरिलिखित पेरियपुराणम आदि के उल्लेखों के प्रति रिक्त और कोई उल्लेख वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
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