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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती आचार्य ]
बारसवास सएसु, पन्नासहिएसु वद्धमारणायो । चउद्दसि पढम पवेसो पकप्पियो साइसूरिहिं ॥
अर्थात् --- पन्नासहिएसुं यानि वीर निर्वाण के बारह सौ (१२००) वर्ष बीतने में जब ५० (पचास ) वर्ष कम रहे, उस समय अर्थात् वीर निर्वाण सम्वत् १९५० में स्वाति सूरि द्वारा सर्व प्रथम चतुर्दशी के दिन पाक्षिक प्रतिक्रमण करने की परिपाटी प्रारम्भ की गई ।
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'रत्नसंचय' ग्रन्थ में इससे कुछ भिन्न निम्नलिखित गाथा उपलब्ध होती है :
वारसवास सएस पुर्णिम दिवसात्रो पक्खियं जेण । चाउट्सी पठवेसु पकप्पिओ साहिसूरिहि ॥
अर्थात् वीर निर्वारण से १२०० (बारह सौ ) वर्ष पश्चात् साहि सूरि ने पाक्षिक प्रतिक्रमरण पूर्णिमा से हटाकर चतुर्दशी के दिन प्रचलित किया ।
उमास्वाति और ये स्वाति भिन्न-भिन्न हैं । एक नहीं । इससे अधिक जानकारी इनके सम्बन्ध में उपलब्ध नहीं होती ।
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