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________________ थारपद्रगच्छ श्रमण भगवान् महावीर के ३४३ पट्टधर प्राचार्य श्रीहरिषेण के प्राचार्यकाल में हारिलगच्छ के पांचवें पट्टधर भाचार्य बटेश्वर सूरि हारिल गच्छ की ही उपशाखा स्वरूप थारपद गच्छ के संस्थापक थे। सोलंकी परमार राजा थिरपाल ध्र व ने वि० सं० १०१ में थराद नामक नगर बसाया। इसी नगर में चन्द्रकुल के हारिल गच्छ के प्राचार्य बटेश्वरसूरि ने थारपद्र नामक एक गच्छ की स्थापना की। थराद प्रथवा थारपद्र नगर में इस गच्छ की स्थापना की गई थी इसलिए बटेश्वर सूरि द्वारा संस्थापित यह गच्छ लोक में थारपद्रगच्छ के नाम से विख्यात हुमा। . हारिल वंश अथवा हारिल गच्छ की पट्टावली में युगप्रधानाचार्य हारिलसूरि अपरनाम हरिगुप्त सूरि अथवा हरिभद्रसूरि को इस गच्छ का प्रथम प्राचार्य बताया गया है । उनके पश्चात् क्रमशः देवगुप्तसूरि, शिवचन्द्रगणि प्रौर यक्षदत्त गणि को हारिलसूरि का द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ पट्टधर बताया गया है। हारिल गच्छ की परम्परा में बटेश्वर क्षमाश्रमण को हारिल गच्छ का पांचवां प्राचार्य बताया है। हारिल गच्छ के चौथे प्राचार्य यक्षदत्त के नाग, वृन्द, मम्मड, दुर्ग, अग्नि शर्मा और बटेश्वर ये ६ प्रमुख शिष्य थे। इन ६ के अतिरिक्त उनके और अनेक शिष्य थे। प्राचार्य यक्षदत्तगणि क्षमाश्रमण ने अपने उपरि नामांकित छहों विद्वान् शिष्यों को प्राचार्य पद प्रदान किये। उनके इन छहों शिष्यों में वय की दृष्टि से बटेश्वर सबसे छोटे थे। प्राचार्य पद प्राप्त करने के पश्चात् नाग बटेश्वर प्रभृति छहों प्राचार्य अपने गुरुदेव की पाशानुसार अपने-अपने श्रमणसमूह सहित विभिन्न क्षेत्रों में जैनधर्म का प्रचार करते हुए विचरण करने लगे। प्राचार्य बटेश्वर विचरण करते हुए पारपद्र नगर में पाये। वहां उन्होंने अपने उपदेशों से अनेक भव्यों को धर्म मार्ग पर स्थिर किया। प्रनेकों को सम्यक्तव का बोष प्रदान कर सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र में प्रास्थावान् बनाया। स्वल्प समय में ही बटेश्वरसरि के भक्तों की संख्या में प्राशातीत वृद्धि हुई। अपने भक्तों के अनुरोध पर संघ का सुचारू रूप से संचालन करने के लिए उन्होंने पारपत्र नगर में पारपद्रगण्य की स्थापना की। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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