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भगवान् महावीर के २६ वें एवं तीसवें पट्टधर क्रमशः शंकरसेन और जसोभद्र के प्राचार्य काल के
समय के प्रमुख ग्रन्थकार।
(१) कोट्टाचार्य- इन्होंने जिन भद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा लिखित विशेषावश्यक की अपूर्ण टीका को पूर्ण किया। इन्होंने जिनभद्र गरिण से शास्त्रों का शिक्षण प्राप्त किया था। इससे अधिक इनके सम्बन्ध में विशेष परिचय उपलब्ध नहीं होता।
(२) सिंहगरिण (सिंहसूर)---इन्होंने नयचक्र टीका नामक दार्शनिक ग्रन्थ की रचना की। इनका भी इतना ही परिचय उपलब्ध है।
(३) कोट्याचार्य-ये कोट्टाचार्य से भिन्न उत्तरकालवर्ती विद्वान् प्राचार्य थे। इन्होंने विशेषावश्यक भाष्य पर टीका की रचना की। ये विक्रम की आठवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के प्राचार्य थे।
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