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श्रमण भगवान महावीर के ३२वें पट्टधर प्राचार्य
श्री वीरजस
जन्म
दीक्षा प्राचार्य पद स्वर्गारोहण गृहवास पर्याय सामान्य साधु पर्याय - प्राचार्य पर्याय --- पूर्ण साधु पर्याय - पूर्ण आयु
वीर नि० सं० ११०३ वीर नि० सं० १११८ वीर नि० सं० ११३२ वीर नि० सं० ११४६ १५ वर्ष १४ वर्ष १७ वर्ष ३१ वर्ष ४६ वर्ष
वीर निर्वाण सं० ११३२ में भगवान महावीर की मल परम्परा के ३१वें प्राचार्य श्री वीरसेन के दिवंगत हो जाने पर उनके उत्तराधिकारी प्रमुख विद्वान् शिष्य श्री वीरजस को उसी वर्ष में भगवान् महावीर के ३२वें पट्टधर के रूप में प्राचार्य पद पर आसीन किया गया। श्री वीरजस ने १५ वर्ष की स्वल्पायु में प्रभू के ३१वें पट्टधर आचार्य वीरसेन से पंच महाव्रत रूप श्रमण धर्म की दीक्षा अंगीकार कर अपनी १४ वर्ष की सामान्य साधु पर्याय में आगमों के साथ-साथ विविध विषयों के ग्रन्थों का अध्ययन किया। मुनि वीरजस की सुतीक्ष्ण बुद्धि एवं आर्जव-मार्दव वाग्मिता, विनय, भव्य व्यक्तित्व आदि गुणों पर मुग्ध होकर चतुर्विध संघ ने उन्हें २६ वर्ष जैसी पूर्ण यौवन-वय में प्राचार्य पद के गुरुतर भार को वहन करने के योग्य समझ कर भगवान महावीर के ३२वें पट्टधर के रूप में आचार्य पद पर आसीन किया।
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