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________________ ४५२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ वर्ष से ऊपर की अवस्था हो जाने पर भी वे साहित्य-सृजन में लीन रहे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना प्रारम्भ की। वे इस वृत्ति की षष्ठ गणधरवाद तक ही रचना कर पाये थे कि वे स्वर्गस्थ हो गये । उनके इस प्रारम्भ किये हुए कार्य को कोट्याचार्य ने सम्पन्न किया। इस प्रकार जीवन पर्यन्त जिनशासन की महती सेवा कर युगप्रधानाचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण १०४ वर्ष...६ मास और ६ दिन की आयु पूर्ण कर वीर नि. सं. १११५ में स्वर्गस्थ हुए । अपने पार्थिव शरीर के रूप में वे आज नहीं रहे पर प्रकाशप्रदीप के समान उनकी कृतियां विगत लगभग १४०० वर्षों से श्रमरण-श्रमणी वर्ग, साधक वर्ग विद्वद्वर्ग को मार्गदर्शन करती आ रही हैं और भविष्य में भी करती रहेंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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