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२६वें युगप्रधानाचार्य हारिल्ल सूरि के नाम पर
नवीन गच्छ की उत्पत्ति हारिल गच्छ
कुवलयमाला नामक ग्रन्थ के रचयिता प्राचार्य उद्योतनसरि-प्रपर नाम दाक्षिण्यचिह्न ने अपने ग्रन्थ के अन्त में जो प्रशस्ति दी है, उसके अनुसार हारिल गच्छ की पट्ट-परम्परा इस प्रकार है :
१. युगंप्रधानाचार्य हरिगुप्त-प्रपर नाम हारिल । इसके नाम पर हारिल
गच्छ की स्थापना की गई।
२. देवगुप्त । ये प्राचार्य महाकवि थे इस प्रकार का उल्लेख 'कुवलयमाला'
के रचनाकार ने किया है।
३. शिवचन्द्र । ये स्थान-स्थान पर जिनालयों के दर्शन करते हुए भिन्न___ माल पहचे और शेष जीवन उन्होंने वहीं व्यतीत किया। उद्योतनसूरि
ने इन्हें भिन्नमाल निवासियों के लिये कल्पवृक्ष तुल्य बताया है।
४. यक्षदत्त गरिण । हारिल गच्छ के ये महा यशस्वी प्रभावक आचार्य
हए हैं। प्राचार्य यक्षदत्त के नाय, वृन्द, मम्मट, दुर्ग, अग्नि शर्मा और
बटेश्वर नामक ६ शिष्य थे। ५. बटेश्वर-इन्होंने नाग, वृन्द प्रादि पांच गुरुभ्राताओं के साथ दूर-दूर
के क्षेत्रों में धर्म की प्रभावना की एवं अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया। प्राकाशवप्र नामक नगर में प्राचार्य बटेश्वर ने एक प्रति विशाल और मनोहर जिनालय का निर्माण करवाया।
६. तत्वाचार्य इनके जीवनवृत्त का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। ७. दाक्षिण्यचिह्न प्रपर नाम उद्योतन सूरि। इन्होंने लोकप्रिय कुवलय
माला नामक ग्रन्थ की रचना की। इनका जीवन परिचय यथास्थान प्रागे दिया जायगा।
जोधपुर नगर से ६ कोश उत्तर दिशा में स्थित गांधाणी नामक ग्राम से प्राप्त भगवान् ऋषभदेव की सर्व धातुओं से निर्मित मूर्ति के पृष्ठ भाग पर उट्टङ्कित
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