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अन्य ग्रंथकार
नियुक्तिकार भद्रबाहु के समसामयिक जिन विद्वानों ने महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की वे इस प्रकार हैं :
१. बटुकेर-ईसा की पांचवी-छठी शताब्दी के इन विद्वान प्राचार्य ने "मूलाचार" नामक प्रागमिक ग्रन्थ की रचना की। इनके सम्बन्ध में यह धारणा चली आ रही थी कि ये दिगम्बर परम्परा के प्राचार्य थे किन्तु शोधार्थी विद्वान् खोज के पश्चात् यह मानने लगे हैं कि ये यापनीय परम्परा के प्राचार्य थे।'
२. शिवार्य (शिवनन्दी)---इन यापनीय आचार्य ने २१७० गाथात्मक पाराधना नामक एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। साधकों के लिए यह ग्रन्थ बड़ा ही उपयोगी है, यही कारण है कि शताब्दियों से यह ग्रन्थ जैनों में बड़ा ही लोकप्रिय रहा है।
आज से दो दशक पूर्व तक दिगम्बर परम्परा इसे अपना आगमिक ग्रन्थ मानती थी किन्तु अब दिगम्बर विद्वानों ने इस ग्रन्थ को यापनीय परम्परा का मान लिया है। इसके उपरान्त भी श्रद्धालु साधकों द्वारा इस ग्रन्थ का.बड़ी श्रद्धा से पारायण किया जाता है।
३. सर्वनन्दि-दिगम्बर परम्परा के विद्वान् सर्वनन्दि ने शक सं० ३८० तदनुसार वि० सं० ५५५ में दक्षिण के तत्कालीन शक्तिशाली पाण्ड्य राज्य के पाटलिक नामक स्थान पर प्राकृत भाषा के लोक विभाग नामक एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। कालान्तर में सिंह सूरर्षि ने प्राकृत से इस ग्रन्थ का संस्कृत भाषा के पद्यों में अनुवाद किया । वर्तमान में प्राकृत भाषा का लोक विभाग कहीं उपलब्ध नहीं है। केवल संस्कृत भाषा में निबद्ध लोक विभाग ही उपलब्ध है।।
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४. यतिवृषभाचार्य:-प्राचीन प्राचार्यों में यतिवृषभ प्राचार्य का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी दो अतीव महत्त्वपूर्ण कृतियां जैन जगत में बड़ी लोकप्रिय हैं । पहली है 'कषाय प्राभूत चरिण' और दूसरी 'तिलोय पण्णत्ति। अनेक विद्वानों ने प्राचार्य यति वृषभ को विक्रम की पांचवीं-छठी शताब्दी का प्राचार्य माना है। जयधवला में कषाय पाहुड़ के चूपिणकार यति वृषभ को वाचक आर्य , The Jaina Path of Purification page 79. Padmanabh S. Jaini, published
by Motilal Banarasidas, Delhi, Bungalow Road, Jawahar Nagar, Delhi 7, २ जैनधर्म का मौलिक इतिहास भाग २, पृष्ठ ४४-४५
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