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________________ ४२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ अपने ज्ञानातिशय से जब धर्मदासगणि को यह विदित हुआ कि उनका पुत्र पापपूर्ण कार्यों में संलग्न है तो उन्होंने धर्ममार्ग से विमुख अपने पुत्र को सन्मार्ग पर लाने के लिए उपदेश माला की रचना की। उन्होंने जिनदासगणि को उपदेश माला का अध्ययन करवाया और जिनदासगणि ने उसे कण्ठस्थ कर लिया। धर्मदासगणि महत्तर ने रणसिंह को उपदेश देने के लिए जिनदासगणि और साध्वी विजयश्री को भेजा। उन दोनों ने विजयपुर पहुंचकर राजा रणसिंह को "उपदेश माला" के माध्यम से धर्मोपदेश दिया। उपदेश माला के उपदेश का राजा रणसिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह विशुद्ध सम्यक्त वधारी श्रावक बन गया और कालान्तर में अपने पुत्र को राज्य सम्हलाकर प्रा० मुनिचन्द्र के पास श्रमणधर्म में दीक्षित हो गया। वस्तुतः उपदेशमाला एक ऐसा ग्रन्थरत्न है जो भूलों-भटकों को सत्पथ पर । मारूढ़ करने वाला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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