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हारिलसूरि से पूर्ववर्ती ग्रन्थकार : प्राचार्य समन्तभद्र
दिगम्बर परम्परा में समन्तभद्र नामक एक महान् जिनशासन प्रभावक प्राचीन आचार्य हुए हैं। वे अपने समय के मूर्धन्य कोटि के विद्वान्, अपराजेय, तार्किक, अप्रतिम कवि और महान् ग्रन्थकार थे। आपके सत्ताकाल के सम्बन्ध में इतिहासविदों में बड़ा मतभेद है। यशस्वी कोशकार जिनेन्द्रवर्णी ने इन्हें ईशा की दूसरी शताब्दी का विद्वान् प्राचार्य माना है।' स्वर्गीय पं० जुगलकिशोर मुख्त्यार ने प्राचार्य समन्तभद्र को विक्रम की दूसरी शताब्दी के पूर्वार्द्ध का दिगम्बर आचार्य सिद्ध किया है। जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार नामक एक इतिहास विषयक पुस्तक में श्री फतेहचन्द बेलानी, न्याय, व्याकरण तीर्थ, न्यायरत्न ने प्राचार्य समन्तभद्र को विक्रम की ७वीं शताब्दी का ग्रन्थकार अनुमानित किया है। त्रिपुटी मुनि श्री दर्शन विजयजी, मुनिश्री ज्ञान विजयजी और मुनिश्री न्याय विजयजी ने अपने इतिहास ग्रन्थ 'जैन परम्परा नो इतिहास' में वनवासी परम्परा के प्रवर्तक श्वेताम्बर प्राचार्य सामन्तभद्र और दिगम्बर आचार्य समन्तभद्र दोनों को वीर निर्वाण की ७वीं शताब्दी का एक ही यशस्वी प्राचार्य बताते हुए लिखा है कि प्राचार्य समन्तभद्र श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के समान रूप से मान्य प्राचार्य थे। उन्होंने श्वेताम्बर और दिगम्बर-इस भेद को मिटाकर दोनों ही परम्पराओं को एक करने के लिये पूरा प्रयास किया ।।
___"जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग २” में भी इस प्रकार की सम्भावना व्यक्त की गई है कि सम्भवतः दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के समन्तभद्र और सामन्तभद्र कोई पृथक् दो प्राचार्य न होकर एक ही प्राचार्य हों । श्वेताम्बर परम्परा द्वारा सम्मत इन प्राचार्य के सामन्तभद्र नाम को देखते हुए यही अनुमान किया जाता है कि क्षत्रिय कुलोत्पन्न किसी राजाधिराज के अधीनस्थ सामन्त राजा के पुत्र हों। दिगम्बर परम्परा में भी इन्हें क्षत्रिय कुलोत्पन्न राजकुमार बताया गया है। इसके अतिरिक्त समन्तभद्र का सत्ताकाल दोनों ही परम्पराओं के विद्वानों ने वीर निर्वाण की सातवीं शताब्दी ईशा की दूसरी शताब्दी का प्रथम चरण और
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' जैनेन्द्र सिद्धान्तकोष, भाग १, पृष्ठ ३३६ २ जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० ६६७ 3 जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार, फतेचन्द बेलानी, पृ० ५ ४ जैन परम्परा नो इतिहास, भाग १, पृ० ३४५ ५ जैन धर्म का मौलिक इतिहास, पृ० ६३३
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