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भगवान् महावीर के २८वें पट्टधर वीरभद्र तथा २६वें युगप्रधानाचार्य हारिल सूरि के समकालीन प्रमुख ग्रन्थकार
मल्लवादी :- जैसा कि पहले बताया जा चुका है प्रा. वीरभद्र पौर हारिलसूरि के समय में उनके समसामयिक महान् ताकिक प्राचार्य मल्लवादी हुए । प्रा० मल्लवादी ने नयचक्र नामक दार्शनिक ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने सन्मतितर्क नामक ग्रन्थ की टीका की रचना भी की थी किन्तु वर्तमान में वह टीका उपलब्ध नहीं है।
चन्द्रषि महत्तर :- इन्होंने पंच संग्रह (सटीक) नामक कर्मग्रन्थ के प्रकरण की रचना की । इससे अधिक इनके बारे से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनके माता, पिता, गुरु, नगर आदि का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
संघदासगणि वाचक :-कथा-साहित्य की प्राचीनतम कृति 'वसुदेवहिंडी' के रचनाकार संघदासगणि वाचक और धर्मसेनगरिण का नाम कथासाहित्य के निर्माताओं में सर्वप्रथम लिया जाता है।
इस ग्रन्थ में श्री कृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण का बड़ी ही प्रभावकारी रुचिकर शैली में विस्तृत वृतान्त दिया गया है। वसुदेव के भ्रमण (हिण्डन) का वृतान्त दिये जाने के कारण इस ग्रन्थ का नाम "वसुदेव-हिण्डी" रखा गया है।
इसके दो खण्ड हैं। ग्यारह हजार श्लोक प्रमाण २६ लम्भकात्मक प्रथम खण्ड के कर्ता संघदासगणि वाचक हैं। द्वितीय खण्ड के रचनाकार धर्मसेनगरिण ने सत्रह हजार श्लोक प्रमाण ७१ लम्भकों में इस ग्रन्थ के दूसरे खण्ड को पूर्ण किया है।
जिनदासगरिण महत्तर ने प्रावश्यक चूणि में वसुदेव हिण्डी का उल्लेख किया है । नन्दिसूत्र-णि की प्रशस्ति के उल्लेखानुसार जिनदासगणि महत्तर ने शक सं. ५६८ तदनुसार वीर नि. सं. १२०३ में नन्दिचरिण की रचना सम्पूर्ण की।
३०वें युगप्रधानाचार्य जिनभद्रगरिण क्षमाश्रमण ने अपनी रचना विशेषणवती में वसुदेव हिण्डी का उल्लेख किया है ।
जिनभद्रगणि का समय दुष्पमा समणसंघथयं के अनुसार वीर नि. सं. १०५५ से १११५ तक (६० वर्ष) का माना गया है। इससे यह अनुमान किया जाता है
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