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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ मेरे इन पूज्य बौद्धानन्द को राज्यसभा के सभ्यों की वंचना करने के अपराध में दंडित भी किया जाय ।"
बौद्धानन्द ने कहा :-"महाराज ! आपका वर्षों का जाना पहिचाना बौद्धानन्द मैं ही तो हूं।"
तत्क्षण मुनि मल्ल ने कहा :--"महाराज ! मैं इनसे यही कहलवाना चाहता था। जो कार्य मुझे करना चाहिये था, वह इन्होंने स्वयं कर दिया है। बौद्धानन्द ने अभी अपना पूर्व पक्ष रखते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि 'प्रात्मा क्षण विध्वंसी है। इस दृष्यमान जगत में शाश्वत नाम की कोई वस्तु नहीं।' इसके अनुसार तो कल जो बौद्धानन्द मेरे साथ शास्त्रार्थ कर रहे थे क्षरण विध्वंसी होने से वे कल ही ध्वंस हो गये । अत: इस समय जो बोल रहे हैं वे कल वाले बौद्धानन्द नहीं, अपितु कोई अन्य हैं।
. अब ये भरी सभा में जो यह कह रहे हैं कि ये ही हैं वे कल वाले बौद्धानन्द । तो ऐसी दशा में इनके इन दो परस्पर विरोधी वक्तव्यों में से कौन सा वक्तव्य सच है और कौनसा झूठ । यदि इनके इस दूसरे कथन को सत्य मान लिया जाय कि ये वे ही कल वाले बौद्धानन्द हैं तो इनके द्वारा रखा गया इनका यह पूर्वपक्ष कि "प्रात्मा भी क्षण विध्वंसी है" स्वत: ही खण्डित हो जाता है ।
___ अनात्मवादपरक पूर्वपक्ष इनके स्वयं के धर्मशास्त्रों से भी असत्य सिद्ध होता है । बुद्धप्रणीत इनके आगमों में एक पाख्यान इस प्रकार का है :--
"एक शान्त, दान्त, सर्वभूतानुकम्पी अतिवृद्ध शाक्य भिक्ष अपने शिष्य वन्द के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर विहार कर रहे थे। विचरण करते हुए वे स्थविर जिस समय एक वन में पहंचे, उस समय उनके नग्न पांव में एक तीक्ष्ण कंटक धंस गया । शूल के कारण स्थविर को पीड़ा होने लगी। एक चतुर शिष्य ने बड़े मनोयोगपूर्वक उस कांटे को निकाला और इस प्रकार उन महास्थविर की पीड़ा शान्त हुई । वे पुनः पदयात्रा करने लगे।
एक मेधावी शिष्य ने उन महास्थविर से प्रश्न किया-"भगवन् ! आप तथागत प्रगीत सिद्धान्तों का त्रिकरण एवं त्रियोग से अक्षरश: पालन करते हैं। समस्त भूतसंघ को प्रात्मवत् समझते हुए सदा प्राणिमात्र के साथ अनन्य प्रात्मीय के समान व्यवहार करते हैं। पूज्यपाद! आप जैसे शान्त-दान्त-निष्पाप विश्वबन्धु महान् सन्त के पैर में यह कांटा किस कारण चुभ गया। हम सब को बड़ा आश्चर्य हो रहा है ? अकारण करुणाकर ! आप कृपाकर हम सब शिष्यों की इस जिज्ञासा को शान्त कीजिये।"
उन स्थविर शाक्याचार्य ने अपने शिष्यों की जिज्ञासा का शमन करते हुए कहा :---
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