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________________ ४१२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ ताकिक बौद्ध भिक्ष के वाद कौशल तथा शिलादित्य के बौद्ध धर्मानुयायी बन जाने से बौद्ध संघ की अभिवृद्धि के परिणामस्वरूप जैन संघ क्षीण होने लगा। एक दिन उस प्रोजस्वी और विचारशील बालक मुनि मल्ल ने अपनी माता साध्वी से पूछा- "मातर ! अपना संघ इतना क्षीण क्यों है ? और पूर्वापेक्षया उत्तरोत्तर क्षीण से क्षीणतर क्यों होता चला जा रहा है ? इसका कारण क्या है ?" __ अपने पुत्र बालक मुनि का प्रश्न सुनकर साध्वी माता की आंखों में आंसू छलक उठे । उसने कहा--"मुने ! हमारा संघ पहले ग्राम-ग्राम और नगर-नगर में फैला हुआ था। पूर्व में महान् जिन--- शासन प्रभावक प्राचार्यों के प्रताप से हमारा संघ बड़ा ही शक्तिशाली था। दुर्भाग्य से अब उस प्रकार के प्रभावक आचार्यों का प्रभाव हो गया है । एक बौद्ध तार्किक ने श्वेताम्बर आचार्य को वाद में वितण्डावाद पूर्वक पराजित कर दिया और इस कारण जैन साधु वल्लभी राज्य को छोड़कर अन्यत्र चले गये हैं। तुम्हारा मामा शिलादित्य बौद्धधर्मावलम्बी बन गया है और यहाँ जैन संघ के न रहने के कारण आज सभी जैन तीर्थों पर बौद्धों ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है । यही कारण है कि हमारा जैन संघ दिन प्रतिदिन क्षीण होता चला जा रहा है।" यह सुनकर बालक मुनि मल्ल के हृदय को गहरा आघात पहुंचा । मुनि मल्ल ने तत्क्षण उच्च स्वर में प्रतिज्ञापूर्वक कहा--- "यदि इन बौद्धों को यहां से मैं मूलतः उखाड़ कर नहीं फैंक दूं तो मुझे मुनि हत्या का पाप लगे।" __ इस प्रकार की कठोर प्रतिज्ञा करने के पश्चात् बालक मुनि मल्ल अपनी माता की अनुमति लेकर एक पर्वत की गुफा में चले गये और वहां वे घोर तपश्चरण करने लगे। लम्बी तपस्या के पश्चात् वे उस पर्वत की तलहटी में बसे पास ही के किसी. ग्राम में भिक्षाटन करते और वहाँ से रूखा-सूखा आहार लाकर छ?, अष्टम आदि अनेक प्रकार की दुष्कर तपस्या का पारण करते। इस प्रकार घोर तपश्चरण करते हुए मुनि मल्ल को लगभग एक वर्ष व्यतीत हो गया। निरन्तर चिन्तन, एकाग्र ध्यान और कठोर तपश्चरण के प्रभाव से उनकी प्रज्ञा जागृत हुई। उनके अन्तर में ज्ञान की दिव्य ज्योति प्रकट हुई और वे सरस्वती के परम कृपापात्र बन गये। तपस्या के प्रभाव से शासनदेवी उन पर प्रसन्न हुई और उसने उन्हें अजेय वादी होने का वरदान दिया। तर्कशास्त्र पर गहन चिन्तन-मनन कर उन्होंने 'नयचक्र' नामक ग्रन्थराज की रचना की। उनमें अमित प्रात्मशक्ति और असीम क्षमता का अभ्युदय हुआ। उन्हें दृढ़ विश्वास हो गया कि उनका 'नयचक्र' शास्त्रार्थ में बड़े से बड़े प्रतिपक्षियों पर विजय प्राप्त कराने में दिव्य अस्त्र के समान है। जिनशासन की प्रभावना हेतु मुनि मल्ल वल्लभी की ओर प्रस्थित हुए । वल्लभी की राज्यसभा में शिलादित्य के समक्ष उपस्थित हो उन्होंने कहा- "मैं आपका भानजा मल्लवादी हं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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