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आलेखन किया गया है। निमार्णाधीन चतुर्थ भाग में वीर निर्वाण सं. १४७५ से लोंकाशाह तक अर्थात् वीर निर्वाण सं. १९७८-२००१ तक का और इस ग्रन्थ माला के अन्तिम पाँचवें भाग में लोकाशाह से प्रारम्भ कर वर्तमान काल से थोड़ा आगे तक अर्थात् वीर निर्वाण सं. २००१ से अनुमानतः वीर निर्वाण सं. २५१५ तक का इतिहास निबद्ध किया जायेगा।
इस गुरुतर कार्य के निष्पादन के साथ विविध आयामों में सुदीर्घकालीन अथक श्रम एवम् दृढ संकल्पों की लम्बी श्रृंखला जुड़ी हुई है। विशाल भारत के विभिन्न प्रदेशों के ग्रन्थागारों, संग्रहालयों, विस्तीर्ण क्षेत्रों में विकीर्ण ज्ञात-अज्ञात ग्रन्थों, पत्रों, अभिलेखों एवं ऐतिहासिक सामग्री के पुरातात्विक स्रोतों को शोध दृष्टि से खोज-खोज कर स्रोतों के आधार पर इस दुरूह कार्य का निष्पादन-संपादन आधे से अधिक किया जा चुका है और शेष किया जा रहा है। इस ग्रन्थमाला के आलेखन में महान् पूर्वाचार्यों, विद्वान् इतिहास लेखकों के ग्रन्थों का, उदाहरणस्वरूप आचार्य हेमचन्द्र सूरि के त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, आचार्य प्रभाचन्द्र के प्रभावक चरित्र आदि का उपयोग किया गया है।
इस ग्रन्थमाला की तथ्य प्रतिपादन शैली बड़ी ही रोचक, सरस, सरल, गहन-गम्भीर विद्वत्ता से परिपूर्ण और भावाभिव्यंजना के सभी गुणों से समवेत है। अपनी सरस-सरल शैली के कारण यह ग्रन्थमाला बहुजनहिताय बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी। प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन धर्म के उत्कर्ष, अपकर्ष, पुनरुत्थान के साथ-साथ समय-समय पर जैनधर्म की मूल मान्यताओं एवं आचार में किये गये ऐतिहासिक दृष्टि से अपरिहार्य परिवर्तनों और उनमें उत्पन्न हुई विकृतियों का क्रमिक इतिहास निबद्ध किया गया है। जैन धर्म वस्तुतः महती महनीया पूर्ण अहिंसा की आधार शिला पर अवस्थित मन-वचन-कर्म से (मनसा-वाचा-कर्मणा) अहिंसामय धर्म है। इसी कारण महिला वर्ग के दैनन्दिन धार्मिक जीवन का और जैनधर्म के उत्कर्ष के लिये महिलाओं द्वारा दिये गये योगदान का जैन इतिहास में विशिष्ट-महत्वपूर्ण स्थान है (उदाहरणार्थ, देखिये प्रस्तुत ग्रन्थ, पृष्ठ सं. २०१)। महिलाओं द्वारा किये गये उस योगदान में और समष्टि के कल्याण की भावनाओं से ओत-प्रोत उनके दैनन्दिन जीवन में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और परम श्रेयस्कर सजीव सन्देश है आज के सम्पूर्ण विश्व की समग्र मानवता के लिए, जो महान् उल्लास भरी महती आशाएं लिए भावी अहिंसापूर्ण विज्ञान के युग की ओर उत्कट उत्कण्ठा के साथ अग्रसर होने जा रही है। - वर्तमानकालीन प्रलयंकर पारमाणविक शक्ति के युग में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य
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