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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
(प्रेरक एवं मार्ग दर्शक : पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज) के सम्बन्ध में
प्रथम संस्करण में प्रकाशित
दो शब्द
माननीय पद्म विभूषण डॉ. दौलत सिंह कोठारी चांसलर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
युगादि से अद्यावधि पर्यन्त के जैन इतिहास पर शोधपूर्ण प्रकाश डालने वाला यह अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य एक ऐसे ख्याति प्राप्त महान् श्रमण श्रेष्ठ जैनाचार्य के मार्गदर्शन में सम्पन्न किया जा रहा है, जिनका जीवन विगत ६३ वर्ष जैसी सुदीर्घावधि से भगवान् महावीर के पंच महाव्रतात्मक महान् सिद्धान्त अहिंसा-संत्य- अस्तेय-ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह
प्रति एवं न केवल मानवता के कल्याण के प्रति अपितु निखिल विश्व के सकल चराचर प्राणिवर्ग के कल्याण के प्रति भी पूर्णतः समर्पित है, एवं जिसमें वे अहर्निश प्रतिपल प्रतिक्षण निरत हैं।
इस गुरुतर कार्य को पांच वृहदाकार भागों में निष्पादित किये जाने का संकल्प है। संकल्पाधीन उन पांच भागों में से प्रथम और द्वितीय ये दो भाग प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरा भाग यह प्रस्तुत ग्रन्थ भी प्रकाशन प्रक्रिया की पूर्णाहुति के साथ ही धर्म संघ के कर-कमलों में समर्पित होने जा रहा है। इस ग्रन्थमाला के चतुर्थ और पंचम ये शेष दो भाग निर्माणाधीन हैं। इस इतिहास ग्रन्थमाला के प्रथम भाग में, युगादि में, पुरातन प्रागैतिहासिक काल में हुए मानव संस्कृति के सूत्रधार प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के समय से लेकर चौबीसवें (अन्तिम) तीर्थंकर भगवान् महावीर के निर्वाण समय तक के जैन धर्म के इतिहास को समाविष्ट किया गया है। द्वितीय भाग में भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य गौतम, प्रथम पट्टधर एवं प्रचलित जैनाचार्य परम्परा के प्रथम आचार्य आर्य सुधर्मा से लेकर २७वें पट्टधर आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के समय तक निर्वाणोत्तर १००० वर्ष का जैन धर्म का इतिहास निबद्ध किया गया है। प्रस्तुत तृतीय भाग में वीर निर्वाण सं. १००१ से १४७५ तक अर्थात् स्वनाम धन्य हेमचन्द्राचार्य से १६१ वर्ष पूर्व तक जैन इतिहास का
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