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अपने शैशवकाल (१९७०) से ही आचार्यदेव के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा भक्ति रखने वाली हमारी मुंहबोली बिटिया राजेश्वरी कुशवाहा १९७८ से ही इतिहास सामग्री के आलेखन में हमें यथाशक्य सहयोग देती आ रही है। प्रस्तुत ग्रन्थ की पाण्डुलिपि के तैयार करने में भी उसने और उसके पति कुंवर रामसिंह राठोड़, बी. काम. . ने हम दोनों की बड़ी सहायता की। हम सखाद्वय इस युगल जोड़ी की सुख-समृद्धिपूर्ण शतायु की कामना करते हैं।
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गजसिंह राठोड़
न्या. व्या. तीर्थ सिद्धान्त विशारद
प्रेमराज जैन न्याय-सिद्धान्त विशारद व्याकरण तीर्थ
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