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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
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तर्क शास्त्र के गहरे अध्ययन से अजेय वादी बनाकर जिनशासन की महती सेवा की । स्याद्वाद, न्याय और तर्कशास्त्र पर गहरा प्रकाश डालने वाला मल्लवादी का वह महान् ग्रन्थ 'नयचक्र' आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है किन्तु इस पर सिंहगणि क्षमाश्रमण द्वारा प्रणीत टीका उपलब्ध है।
प्राचार्य मल्लवादी सूरि के दोनों बड़े भाई भी बड़े विद्वान् थे। मुनि अजितयश ने "प्रमाण" ग्रन्थ की और उनके अनुज तथा मल्लवादी के अग्रजन्मा मुनि यश ने "अष्टांग निमित्त बोधिनी संहिता" की रचना की । मल्लवादी के बड़े भाई अजितयश और यश-इन दोनों मुनियों द्वारा रचित उपरोक्त दोनों ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं हैं।
प्राचार्य मल्लवादी के सत्ताकाल के सम्बन्ध में यद्यपि प्रभावक चरित्र में कोई उल्लेख नहीं किया गया है तथापि अनेक ऐसे तथ्य जैन वाङमय में उपलब्ध हैं, जिनसे उनका सत्ताकाल वीर निर्वाण की ११वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध सिद्ध होता है। मल्लवादी सूरि द्वारा रचित 'नयचक्र' पर सिंहगरिग क्षमाश्रमण (अपर नाम-सिंहसूरि) ने टीका की रचना की थी। वह टीका आज भी उपलब्ध है। सिंह गणि क्षमाश्रमण 'वसुदेव हिंडी' के रचनाकार संघदासगरिण, 'धम्मिल्ल हिंडी' के रचनाकार धर्मसेनगरिण और पञ्चकल्प भाष्य के संयुक्त रचनाकार संघदासगरिण और धर्मसेनगणि के उत्तराधिकारी प्रतीत होते हैं। संघदासगणि और धर्मसेनगणि का सत्ताकाल विक्रम की छठी शताब्दी है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंहगणि विक्रम की सातवीं शताब्दी में विद्यमान थे। सिंहगरिण ने मल्लवादी के नयचक्र ग्रन्थ पर टीका की रचना की, इससे यह तो निर्विवाद सिद्ध है कि मल्लवादी सिंहगणि से पूर्ववर्ती आचार्य थे और इस पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मल्लवादी का सत्ताकाल विक्रम की छठी शताब्दी हो सकता है।
दूसरा प्रमाण यह है कि हरिभद्र सूरि (याकिनी महत्तरासूनुः) ने अपनी रचना "अनेकांत जय पताका" में मल्लवादी कृत "सन्मति तर्क की टीका" के अनेक अवतरण दिये हैं। इससे भी यह स्पष्ट होता है कि प्राचार्य मल्लवादी वस्तुतः याकिनी महत्तरासूनुः हरिभद्र के पूर्ववर्ती ग्रन्थकार और प्राचार्य थे। याकिनी महत्तासूनुः हरिभद्र का समय वि. सं. ७५७ से ८२७ तदनुसार वीर नि. सं. १२२७ से १२६७ के बीच का रहा। वि. सं. ७८५ (वीर नि. सं. १२५५) में हरिभद्रसरि की विद्यमानता को सूचित करने वाली एक प्राचीन गाथा उपलब्ध होती है। इन तथ्यों से यह स्पष्ट रूप से सिद्ध होता है कि हरिभद्र सूरि से और सिंहगणि से पूर्ववर्ती आचार्य होने के कारण आचार्य मल्लवादी विक्रम की छठी शताब्दी के प्राचार्य थे।
' देखिए, प्रस्तुत ग्रन्थ में ही हारिलसूरि का जीवन वृत्त ।
(सम्पादक)
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