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भगवान् महावीर के २८वें पट्टधर प्राचार्य वीर भद्र के समय के प्रभावक प्राचार्य
मल्लवादी सूरि
२६वें. युगप्रधानाचार्य हारिल सूरि के युग प्रधानाचार्य काल में मल्लवादी नामक एक महान शास्त्रार्थ कुशल वादी और जिन शासन के प्रभावक आचार्य हुए। प्रभावक चरित्र की "सी" संज्ञक एक हस्तलिखित प्रति में ऋषि मण्डल स्तोत्र के एक श्लोक को उद्धत करते हुए प्राचार्य मल्लवादी को नागेन्द्र कुल का शिरोमणि और शास्त्रार्थ निपुण वादियों में अग्रणी बताया गया है।' इससे विदित होता है कि वे नागेन्द्र कुल के प्राचार्य थे। प्राचार्य मल्लवादी के गुरु का नाम जिनानन्द सूरि था।
प्रभावक चरित्र के उल्लेखानुसार जिनानन्द सूरि एक बार चैत्ययात्रार्थ भृगुकच्छ गये। वहां नन्द अथवा बुद्धानन्द नामक एक बौद्ध भिक्षु रहते थे। वह अपने समय के एक विख्यात वादी एवं तार्किक थे। उधर जिनानन्द भी स्व-पर समय के ज्ञाता ओर उच्च कोटि के विद्वान् थे। वह वाद प्रधान युग था। विभिन्न धर्मों, मतों एवं मान्यताओं के विद्वानों में उस समय यत्र-तत्र शास्त्रार्थ होते ही रहते थे। जिनानन्द सूरि की चारों ओर फैलती हुई ख्याति को बुद्धानन्द सहन नहीं कर सके । उन्होंने जिनानन्द सूरि के साथ शास्त्रार्थ करने का निश्चय किया । जिनानन्द और बुद्धानन्द का शास्त्रार्थ कई दिन चला और अन्त में वितण्डावाद के बल पर बुद्धानन्द नेवाद में विजय प्राप्त की। इस पराभव के पश्चात् प्राचार्य जिनानन्द ने भृगुकच्छ मे ठहरना सम्मानजनक न देख वल्लभी की ओर विहार किया।
' श्रीनागेन्द्रकुलकमस्तकमणि. प्रामाणिकग्रामणी ---
रासीदप्रतिमल्ल एव मुवने श्रीमल्लवादी गुरुः । प्रोद्यत्प्रातिभवैभवोद्भवमुदा श्री शारदा सूनवे । यस्मै तं निजहस्तपुस्तकमदाजंत्रम् त्रिलोक्या अपि ॥ऋषिमण्डलात्।।
(प्रभावकचरित्र, पृ० ७६) . चंत्ययात्रासमायातं, जिनानन्दमुनीश्वरम् । जिजे वितंडया बुदया, नन्दाख्यः सौगतो मुनिः ।
(प्रभावकचरित्र, पृष्ठ ७७)
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