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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
विषयक ज्ञान है तो साहस के साथ स्पष्ट रूप से ये बताये कि मेरी भविष्यवाणी के विपरीत कब-कब क्या-क्या होने वाला है ?'
इस पर राजा ने पुनः प्राचार्य भद्रबाहु से प्रार्थना की :-भगवन् ! आपका ज्ञान सागर के समान अगाध है। आपके वचनों की प्रामाणिकता पर किसी को सन्देह नहीं है। पर ज्योतिष शास्त्र को प्रामाणिकता के सम्बन्ध में आज का यह प्रसंग वस्तुतः एक कसौटी है। मेरी भी जिज्ञासा है कि अपने कथन को थोड़ा स्पष्ट करें कि सातवें दिन क्या होने वाला है।"
प्राचार्य भद्रबाह ने शान्त स्वर में कहा- "इस प्रश्न पर मेरा मौनस्थ रहना ही उचित था किन्तु आपके बार-बार के प्राग्रह को ठुकराना भी उचित नहीं समझ कर मैं यही कहूंगा कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वास्तविक भवितव्यता यह है कि सातवें दिन के अन्त में इस बालक की विडाल से मृत्यु हो जायगी।"
___ यह सुनकर सभी स्तब्ध रह गये । किन्तु वराहमिहिर बड़ा क्रुद्ध हुआ और यह कहता हा अपने घर की ओर चल पड़ा :-"महाराज! भद्रबाह का कथन असत्य सिद्ध होगा और उस दशा में आठवें दिन इनको कठोर दण्ड दिया जाय।"
। पर उसका मन सशंकित हो उठा । उसने अपने घर के चारों ओर सैनिकों का कड़ा पहरा लगा दिया। प्रसूतिगह में भी सभी प्रकार की आवश्यक सामग्री का समुचित प्रबन्ध कर उसने अपने पुत्र की रक्षा के लिये दक्ष धात्री को सात दिन तक प्रतिक्षण सतर्कता बरतने और सूतिका गृह में ही रहने का आदेश दिया। उसने इस बात का पूरा प्रबन्ध कर दिया कि कोई भी विडाल उसके घर के आसपास भी नहीं आने पाये।
अन्ततोगत्वा अनिष्ट की आशंका वाला वह सातवां दिन आया। सबको और भी अधिक सजग रहने के लिये सावधान कर वराहमिहिर स्वयं अत्यन्त सतर्क हो प्रसूतिगृह के द्वार पर पहरा देने लगा।
सातवें दिन की समाप्ति के अन्तिम क्षणों में सूतिकागृह के सुदृढ़ कपाटों की विडालमुखी भारी भरकम लोहमयी अर्गला उस नन्हें से बालक पर गिरी और वह तत्काल कालकवलित हो गया। बालक की मृत्यु का समाचार तत्काल सम्पूर्ण नगर में फैल गया। नरेन्द्र पुरोहित के घर पहुंचे। उन्होंने वराहमिहिर को सान्त्वना देने के पश्चात् बालक की मृत्यु का कारण जानना चाहा। उत्तर में अश्र धारा बहाती हुई धात्री ने वह लोहमयी अर्गला महाराजा के सम्मुख प्रस्तुत कर दी। आगल के मुख पर बनी बिड़ाल को प्राकृति को देखकर राजा पाश्चर्याभिभूत हो कह उठे-"भद्रबाहु का निमित्त ज्ञान पूर्ण, अथाह और अनुपम है।"
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