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________________ ४०० ) [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ अर्थात्-मैंने मरणविभक्ति से सम्बन्धित समस्त द्वारों का अनुक्रम से वर्णन किया है । वस्तुतः पदार्थों का सम्पूर्णरूपेण विशद वर्णन तो केवलज्ञानी और चतुर्दश पूर्वधर ही करने में समर्थ हैं। इसके अतिरिक्त दशाश्रु तस्कन्ध-नियुक्ति की पहली गाथा में नियुत्तिकार द्वारा अपने से बहुत पहले हुए अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु को निम्नलिखित शब्दों में नमस्कार किया है : वंदामि भद्दबाहु, पादणं चरिमसगलसुयनारिण। सुत्तस्स कारगमिसि, दसासु कप्पे य ववहारे ॥१॥ अर्थात्-- दशाश्रु तस्कन्ध, कल्प और व्यवहार-इन तीन सूत्रों की, पूर्वो से नियूहनपूर्वक रचना करने वाले महर्षि एवं अन्तिम श्रुतकेवली, प्राचीन प्राचार्य श्री भद्रबाहु को मैं वन्दना करता हूं। ___ इस गाथा से यह सिद्ध हो जाता है कि अन्तिम श्र तकेवली भद्रबाह ने दशाश्रु तस्कन्ध, कल्प और व्यवहार इन तीन सूत्रों की रचना की। उन्होंने नियुक्तियों की रचना नहीं की। नियुक्तियों के रचनाकार तो उनसे बहुत काल पश्चात् हुए निमितज्ञ भद्रवाहु नामक दूसरे प्राचार्य हैं, जो कि श्रु तकेवली भद्रबाहु से बहुत काल पश्चात् हुए। नियुक्तिकार निमितज्ञ भद्रबाहु ने अपने आपको अन्तिम श्रु तकेवली भद्रबाहु से भिन्न बताते हुए, उन्हें प्राचीन, अन्तिम श्र तकेवली और दशा, कल्प और व्यवहार कार इन तीन विशेषणों से अलंकृत कर वन्दन किया है। इस प्रकार के स्तुतिपरक अलंकारों द्वारा अपने मुख से, अपनी लेखनी से अपनी ही स्तुति कर स्वयं द्वारा स्वयं को नमस्कार करने की भद्रबाहु श्रुतकेवली जैसे महर्षि से अपेक्षा करना अत्यन्त अनुचित और अविचारपूर्ण ही माना जायगा। ये दो तथ्य ही इस बात का अन्तिम निर्णय करने के लिए पर्याप्त है कि उपर्युल्लिखित दश नियुक्तियों के रचनाकार अन्तिम श्र तकेवली प्राचार्य भद्रबाहु नहीं अपितु उनमे आठ सौ, पौने नव सौ वर्ष पश्चात् की अवधि के बीच हुए निमितज भद्रबाहु थे। ___ जहां तक नियुक्तिकार निमितज्ञ भद्रबाह के जीवन परिचय का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में मध्ययुगीन कथा साहित्य में, इन पाठ सौ नव सो वर्षों के अन्तर से हुए दोनों महान् आचार्यों के जीवन की घटनाओं को अन्तिम चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु के. जीवन की घटनाओं के रूप में ही प्रस्तुत किया गया है। तथापि ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर निमितज्ञ एवं नियुक्तिकार भद्रबाहु का जीवनचरित्र निम्नलिखित रूप में मान्य किया जा सकता है : --- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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