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२८वें पट्टधर प्राचार्य वीरभद्र एवं युग प्रधानाचार्य हारिल सूरि के समकालीन नियुक्तिकार प्राचार्य भद्रबाहु
(द्वितीय) का जीवन परिचय
वीर नि० सं० १००० से १०४५ की बीच की अवधि में प्राचार्य भद्रबाहु नामक एक महान् ग्रन्थकार हुए हैं। वे अपने समय के विशिष्ट विद्वान्, निमित्तज्ञ एवं नियुक्तिकार थे।
२८वें युगप्रधानचार्य हारिलसूरि का यूगप्रधानाचार्यकाल वीर नि० सं० १००१ से १०५५ तक रहा। कतिपय ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय), इन्हीं २८ वें युगप्रधानाचार्य और हरण राज तोरमारण के गुरु श्री हारिलसूरि के समकालीन और समवयस्क आचार्य थे।
वर्तमान में उपलब्ध नियुक्ति साहित्य के निर्माताओं में प्राचार्य भद्रबाह का स्थान अग्रगण्य माना जाता है। उन्होंने आवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्र तस्कन्ध, कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित इन दश सूत्रों पर दश नियुक्तियों की रचनाएं की।'
आगमों का अध्ययन करने के इच्छ्रक मुनियों एवं साधको के लिए ये नियुक्तियां प्रकाश-प्रदीप तुल्य हैं। प्रागमों के गूढार्थों की, पारिभाषिक शब्दों की इन नियुक्तियों में दृष्टान्तों, कथानकों आदि के माध्यम से बोधगम्य शैली में सुस्पष्ट रूपेरण व्याख्या की गयी है, अत: ये आगमों के अध्येताओं तथा अध्यापका---दोनों ही के लिए समान रूप से बड़ी उपयोगी सिद्ध होती हैं । नियुक्ति साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें “सागर को गागर में मुसमाहित कर देने वाला" संक्षेप शैली को अपनाया गया है । विशद विशाल अर्थ, आख्यानों, दृष्टान्तों, कथानकों
' पायारस्म दसर्वकालियस्स, तह उत्तरज्झमायारे ।
सुयगडे निज्जुत्ति, वोच्छामि तहा दमारगं च ।।१४।। कप्पस्स य णिज्जुत्ति, ववहारस्सेव परमनिउरणस्स । सूरियपन्नत्तीए, वुच्छ इसिभा सियारणं च ॥६५॥1
(आवश्यक नियुक्ति)
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