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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ तत्काल पश्वात् ही “ततो जिनभद्र क्षमाश्रमणः" यह उल्लिखित है । यह तो एक निर्विवाद ऐतिहासिक तथ्य है कि २६वें युगप्रधान हारिल विक्रम सं० ५८५ तदनुसार वीर नि० सं० १०५५ में स्वर्गस्थ हुए और उनके पश्चात् ३०३ युगप्रधानाचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण युगप्रधान पद पर अधिष्ठित किये गये। तो इस प्रकार विचारश्रेरिण में उद्ध त प्राचीन गाथा में हरिभद्र के वि. सं. ५८५ में स्वर्गस्थ होने और उसी समय उनके उत्तराधिकारी पट्टधर के रूप में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के युगप्रधान पद पर आसीन होने का उल्लेख है। इससे इस तथ्य को मानने में किसी प्रकार की कोई शंका को अवकाश नहीं रह जाता कि युगप्रधानाचार्य हारिल का तीसरा नाम हरिभद्र भी था।
एक ही प्राचार्य के तीन नाम होने के औचित्य पर थोड़ा विचार करने पर प्रतीत होता है कि प्राचार्य हारिल का गृहस्थ जीवन का नाम हरिगुप्त था। दीक्षा के समय सम्भवतः उनका नाम हरिभद्र रखा गया हो । अपने युगप्रधानाचार्यकाल में जब उन्होंने अपने अलौकिक वर्चस्व, निर्भीकता, प्रतिभा एवं प्रभाव द्वारा हूणों के भीषण संहारकारी अत्याचारों से देश की रक्षा की तो वे न केवल जैनधर्मावलम्बियों के ही अपितु भारत की सम्पूर्ण प्रजा के भी आदरणीय बन गये। सम्भवतः इसी कारण सर्वसाधारण अपने लोकप्रिय त्राता को 'हारिल'-इस अगाध श्रद्धा और प्यार भरे सुमधुर एवं लालित्यपूर्ण नाम से सम्बोधित करने लगा हो एवं आचार्य हारिल का जन्म यशस्वी शासक गुप्तवंश में हुआ था, इस तथ्य को कालान्तर में कहीं लोग भूल न जायें इस उद्देश्य से उनका हरिगुप्त नाम भी ग्रन्थकारों द्वारा अपनी कृतियों में उल्लिखित किया जाता रहा हो। वस्तुतः अनेक आचार्यों के दो दो नाम जैन वांग्मय में उपलब्ध होते हैं । तित्थोगाली पइन्नय में अन्तिम श्र तकेवली आचार्य भद्रबाहु का नाम 'साधम्मभद्द' (स्वधर्मभद्र) एवं कुवलय माला में शीलांकाचार्य का अपर नाम तत्वाचार्य (तत्तायरिओ) उल्लिखित है। इसी तरह पन्नवणाकार आर्य श्याम का अपर नाम कालकाचार्य भी लोकविश्रु त है। हमारे शासन नायक स्वयं भगवान् महावीर के भी वर्द्धमान, वीर, महावीर, सन्मति, नायपुत्र आदि नाम आगमों एवं प्राचीन ग्रन्थों में उल्लिखित हैं। ठीक इसी प्रकार २६वें युगप्रधानाचार्य के भी विभिन्न ग्रन्थों में आर्य हारिल, हरिगप्त और हरिभद्रये तीन नाम उपलब्ध होते हैं। इसमें किसी प्रकार के असमंजस अथवा ऊहापोह के लिये कोई अवकाश नहीं रहना चाहिए।
नाम-साम्य से उत्पन्न भ्रान्ति
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है युगप्रधानाचार्य हारिल का अपर नाम हरिगुप्त के अतिरिक्त हरिभद्र भी था। इन युगप्रधानाचार्य हरिभद्र से लगभग २०० वर्ष पश्चात् विद्याधर कुल में हरिभद्र नाम के एक और प्राचार्य हुए हैं, जो
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