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वीर सम्बत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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प्राकृति, शैव राजाओं के सिक्कों पर वृषभ (नन्दी) की प्राकृति, विष्णु के उपासक राजाओं के सिक्कों पर लक्ष्मी की मूर्ति और बौद्ध धर्मानुयायी राजाओं के सिक्कों पर चैत्य की प्राकृति उपलब्ध होती है।
अहिच्छत्रा में मिले उपरिवरिणत महाराज हरिगुप्त के तांबे के सिक्के पर पुष्पयुक्त कुम्भकलश का चिह्न अंकित है, इससे विद्वानों द्वारा यह अनुमान किया जाता है कि अहिच्छत्रा का गुप्त वंशीय राजा हरिगुप्त जैनधर्मावलम्बी था। पुरातत्त्ववेत्ता हरिगुप्त के इस सिक्के को विक्रम की छठी शताब्दी का मानते हैं, और यही काल युगप्रधानाचार्य हारिल अर्थात हरिगुप्त सूरि का रहा है। इन परस्पर पुष्टिपरक सभी तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर यह अनुमान करना नितान्त निराधार नहीं अपितु साधार प्रतीत होता है कि प्राचार्य हारिल अपने श्रमरणजीवन से पूर्व गुप्तवंशीय महाराजा थे।
यह एक अनुमान है। इस अनुमान की पुष्टि के लिये इस सम्बन्ध से समुचित शोध की आवश्यकता है कि यदि हारिल सूरि अपने गृहस्थ जीवन में हरिगुप्त नामक महाराजा थे तो उनके पिता का नाम क्या था? अपने पिता के पश्चात् उन्होंने कितने वर्षों तक राज्य किया, संसार से विरक्त होने पर उन्होंने अपना उत्तराधिकारी किसे बनाया, वे वस्तुतः गुप्तवंश की मूल · परम्परा के शासक थे अथवा उसकी किसी शाखा के ? यदि गुप्तवंश की किसी शाखा के 4 तो उसकी राजधानी कहां थी आदि-यादि । इस प्रकार के अनेक प्रश्नों पर शोध के माध्यम से जब तक पूरा प्रकाश नहीं डाला जाता तब तक निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि युगप्रधानाचार्य हारिल अपने श्रमण-जीनन से पूर्व गुप्तवंशी हरिप्तगु नामक महाराजा थे।
युगप्रधानाचार्य हारिल की आयु-परिमारण के सम्बन्ध में "दुस्समा समसंघ थयं" की अवचूरिण के अन्त में दो भिन्न अभिमत दिये गये हैं। पहली मान्यता के अनुसार उनका जन्म वीर नि० सं० ६४३ में, दीक्षा ६६० में, और दूसरी मान्यतानुसार उनका जन्म वीर नि० सं० ९५३ में और दीक्षा वीर नि० सं० १७० में मानी गई है । उक्त दोनों प्रकार की मान्यताओं में प्रार्य हारिल सूरि का युगप्रधानाचार्य काल वीर नि. सं. १००१ से वीर नि. सं. १०५५ तक, कुल मिलाकर ५४ वर्ष का माना गया है । दुस्समा समणसंघ थयं की अवचूरि के अन्त में जो समय सारिणी दी गई है, उसमें आपका सम्पूर्ण आयुष्य ११५ वर्ष, ५ मास और ५ दिन, उल्लिखित है, जो पहली मान्यता के अनुसार ही ठीक वैठता है।
ऐसी स्थिति में उपर्युल्लिखित सभी तथ्यों से यही फलित होता है कि प्राचार्य हारिल का जन्म वीर नि० सं० ६४३ में, दीक्षा ६६. में, युगप्रधानाचार्य पद वीर नि० सं० १००१ में और स्वर्गारोहण वीर नि० सं० १०५५ में हमा।
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