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प्रागमानुसार श्रमण-वेष-धर्म-आचार ]
[ ३७३
अर्थात्-- तब स्कन्दक अरणगार श्रमण भगवान् महावीर से आज्ञा प्राप्त कर हर्षित एवं तुष्ट हो यावत् भगवान् को नमस्कार कर गुणरत्न संवत्सर तप को अंगीकार कर विचरने लगे। गुणरत्न संवत्सर तप की विधि इस प्रकार है --प्रथम मास में व्यवधान रहित निरन्तर एकान्तर उपवास करते हुए दिन में उत्कुटुक आसन से बैठ कर सूर्याभिमुख हो पातापना भूमि में प्रातापना लेते हुए और रात्रि में वस्त्र से प्रावृत शरीर को उद्घाटित (खुला) कर वीरासन से स्थित रहते।
दूसरे मास में दो-दो उपवास, तीसरे मास में तीन-तीन उपवास, चौथे में चार-चार उपवास यावत् सोलहवें मास में सोलह उपवास के पश्चात पारण की व्यवधान रहित तपस्या करते हुए प्रतिदिन दिन के समय सूर्याभिमुख हो उत्कुट
आसन से आतापना लेते और रात्रि के समय शरीर को खुला रख वीर प्रासन से स्थिर रहते।
इससे प्रकट होता है कि भगवान् महावीर की विद्यमानता में उनके श्रमरण संघ के महान् तपस्वी श्रमरणश्रेष्ठ स्कन्दक प्रणगार जैसे तद्भव मोक्षगामी महामुनि भी वस्त्र धारण करते थे।
जंपि यसमणस्स सुविहियस्स तु पडिग्गह धारिस्स भवति भायण भंडोवहि उवगरणं, पडिग्गहो, पादबंधणं, पादकेसरिया, पादठवणं च, पडलाइं तिन्नेव, रयत्ताणं च, गोच्छनो, तिन्नेव, य पच्छाका, रयोहरण चोल पट्रक मुहणंतकमादीयं एवं पि य संजमस्स उववहणठ्ठयाए वाया यव दंसमसग सीय परिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियव्वं संजएण णिच्चं पडिलेहण पप्फोडण पमज्जणाए अहो: रामो य अप्पमत्ते ण होइ सततं निक्खि वियव्वं च गिहियव्वं च भायण, भंडोवहि उवगरणं एवं से संजते विमुत्ते निस्संगे निप्परिग्गहरूई निम्ममे निन्नेह बंधणे सव्व पाव विरते वासी चंदण समाण कप्पे सम तिण मणि मुत्ता लेट्ठ कंचणे समे य माणावमाणणाए, समियरते, समित रागदोसे, समिए समितिसु, सम्मदिट्ठी समे य जे सव्वपारण भूएसु सेहु समणे सुय धारते उज्जुत्ते संजते ।
[प्रश्न व्याकरण (पंचम संवर द्वार)]
अर्थात् और जो भी पात्रधारी सुविहित क्रियापात्र साधु के पास पात्र, मिट्टी के भाँड और सामान्य उपधि तथा सकारण रखने के उपकरण होते हैं, जैसे पात्र, पात्र वंधन, पात्र केसरिका पोंछने का वस्त्र और पात्र स्थापन जिस पर पात्र रक्खे जाय, पटल पात्र ढंकने के तीन वस्त्र और रजस्त्रारणपात्र लपेटने का वस्त्र, गोच्छक पात्र वस्त्र प्रादि प्रमार्जन करने के लिये पूजनी और तीन ही प्रच्छाद प्रोढने के वस्त्र, रजोहरण प्रोघा, चोलपट्टक पहनने का वस्त्र और मुखानन्तक मुखवस्त्रिका प्रादि ये
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