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मागमानुसार श्रमण-वेप-धर्म-प्राचार
[ ३६६ अथवा मुहर्त पश्चात् या थोड़े समय पश्चात् काम भोगों में तीव्र ममता रखने वाले अन्तरायों से युक्त वे साधक प्रात्मा और शरीर के भेद को भूल जाते हैं और काम-भोगों से कभी तृप्त न होते हुए विभिन्न योनियों में उत्पन्न हो संसार में भटकते रहते हैं।
"जे भिक्खु तिहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायचउत्थेहि, तस्स णं नो एवं भवइ.-- चउत्थं वत्थं जाइस्सामि, से महेसणिज्जाइं पत्थाई जाइज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाई धारिज्जा नो धोइज्जा नो रएज्जा नो धोयरत्ताई वत्थाई धारिज्जा, अपलिउञ्चमाणे गामंतरेसु प्रोमचेलिए, एयं ख वत्थधारिस्स सामग्गियं ॥१॥"
(प्राचारांग सूत्र, प्रथम श्रुत स्कन्ध, अध्ययन ८, उद्देशक ४) अर्थात् - जो अभिग्रहधारी मुनि एक पात्र और तीन वस्त्रों से युक्त है, उसके मन में शीतादि के कारण से यह विचार उत्पन्न नहीं होना चाहिये कि - "मैं चौथे वस्त्र की याचना करूं।" यदि तीन वस्त्रों से कम उसके पास हैं तो वह निर्दोष दूसरे या तीसरे वस्त्र की याचना करे और याचना करने पर जैसा भी वस्त्र उसे मिल जाय उसे धारण करे। वह उस वस्त्र को न तो धोवे और न घोकर रंगे हुए वस्त्र को धारण ही करे। वह मुनि परिमाण में स्वल्प और अल्प मूल्य वाले वस्त्र रखने के कारण अल्प वस्त्र वाला कहलाता है। यह वस्त्रधारी मुनि की सामग्री है।
_ "जे भिक्खु एगेण वत्थेण परिवुसिए पायबीइएण तस्स न हो एवं भवइ बिइयं वत्थं जाइस्सामि से आहेसरिणज्जं वत्थं जाइज्जा प्रहापरिग्गहियं वत्थं धारिज्जा जाव गिम्हे पडिवन्ने प्रहापरिजुन्नं वत्थं परिदृविज्जा अदुवा एकसाडे अदुवा अचेले लाधवियं भागममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजारिगया। जस्स णं भिक्खुस्स...........॥१॥
__ (प्राचारांग सूत्र अध्ययन ८, उद्देशक ६) अर्थात्-जो भिक्षु एक वस्त्र और एक पात्र से युक्त है, उसकी इस प्रकार की इच्छा नहीं होनी चाहिये कि-'मैं दूसरे वस्त्र की याचना करूं।' उसका वह वस्त्र यदि पूर्णतः जीर्ण-शीर्ण हो गया हो तो वह दूसरे वस्त्र की याचना कर सकता है। याचना करने पर उसे जैसा भी वस्त्र मिले उसे धारण करे और ग्रीष्म ऋतु पाने पर उस जीर्ण वस्त्र को परिष्ठापित कर दे-त्याग दे, अथवा. एक चादर रखे अथवा अचेलक बन जाये। इस प्रकार वह कमी करता हुमा भली प्रकार समभाव को जाने-समभाव से रहे।
"से भिक्खु वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा वत्थं एसित्तए, से पुण जं वत्थं जाणिज्जा, तं जहा जंगियं वा, भंगियं वा सारिणयं वा, पोत्तगं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा, तहत्पगारं वत्थं वा जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारिज्जा नो
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