________________
समन्वय का एक ऐतिहासिक असफल प्रयास ]
सपा
[ ३६५
इससे आगे पञ्च मंगल के प्रकरण में द्रव्यस्तव के रूप में यह विधान किया गया है कि पूर्वाह्न, मध्याह्न और अपराह्न में नियमित रूप से सदा त्रिकाल चैत्यवन्दन करना चाहिये। चैत्यवन्दन के साथसाथ इस प्रकरण में विद्या सिद्धि मन्त्र जाप और वासक्षेप का भी विधान किया गया है।
इन दोनों प्रकार के स्तवों का वर्णन करते समय जो भाषाशैली अपनाई गयी है उस पर विचार करने से सहज ही यह स्पष्ट हो जाता है कि भावस्तव का महत्त्व बताने में जिस अन्तस्तलस्पर्शी ठोस भाषा का प्रयोग किया गया है उसका वासक्षेप मन्त्र सिद्धि आदि द्रव्य स्तवों का विधान करने एवं उसका महत्त्व बताने वाली
भाषा में नितान्त अभाव है। (२) आर्य वज्र और उनके पाँच सौ शिष्यों के प्राख्यान में तीर्थयात्रा को
असंयम का कारण बताया गया है। आर्य वज की १५०० शिष्या साध्वियों को विशुद्ध संयम का पालन करने वाली और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ श्रमणियां बताते हुए उनकी श्लाघा की गई है। उन साध्वियों ने तीर्थयात्रा के लिए अपने गुरु से कोई निवेदन नहीं किया। इसके विपरीत प्राचार्य वज्र के ५०० शिष्यों ने अपने गुरु से तीर्थयात्रा एवं चन्द्रप्रभ स्वामी का वंदन करवाने की प्रार्थना की। गुरु ने उनको अनुमति नहीं दी। गुरु की अनुमति के बिना ही वे ५०० शिष्य तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थित हुए। इस पर गुरु ने उन्हें ऐसा न करने के लिये अनेक भांति से समझाया। गुरु आज्ञा को शिरोधार्य न करने की दशा में गुरु ने उन्हें दुष्ट शिष्य बताते हए उनके साधु वेष को उनसे छीन लेने का निश्चय किया। गुरु ने एक शिष्य के वेष को तो छीन भी लिया। किन्तु शेष शिष्य विभिन्न दिशाओं में भाग गये ।
___ इस पाख्यान के अन्त में ४६६ शिष्यों के अनन्तकाल तक दुर्गतियों में भटकते रहने का तथा गुरु और शिष्य के, जो कि तीर्थयात्रा के लिये नहीं गये, उसी भव में मुक्त होने का उल्लेख किया गया है।
(३) देव देवेन्द्रों ने पुष्पवृष्टि आदि से तीर्थङ्करों का द्रव्यस्तव या इस
प्रकार के शास्त्रीय उल्लेखों से द्रव्यस्तव सभी के लिये अनुकरणीय है कि नहीं इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महानिशीथ में निम्नलिखित तथ्य प्रकट किये गये हैं :
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org