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समन्वय का एक ऐतिहासिक पर असफल प्रयास ]
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जल से स्थल में और स्थल से जल में संक्रमण करें तो उसे उस प्रकार के संक्रमण करने से पूर्व विधिपूर्वक पैरों का प्रमार्जन करना प्रावश्यक है । यदि कोई इस प्रकार से संक्रमण से पूर्व पैरों का परिमार्जन नहीं करता है, त वह द्वादश सांवत्सरिक प्रायश्चित का भागी हो जाता है । गौतम ! इस कारण वह आचार्य त्वरित गति से नहीं चला।"
उक्त विधि से भूमि का संक्रमण करते हुए उस आचार्य के समक्ष कुछ समय पश्चात् कई दिनों का क्षुधातुर विकट दंष्ट्रा करालों वाला साक्षात् महाकाल के समान वीभत्स प्रतीत होता हा और प्रलयकाल के समान भीषण केशरी सिंह आ गया। सिंह को देखकर उस महाभाग गच्छाधिपति वज्र ने मन ही मन विचार किया :"यदि में द्रतगति से चल तो इस सिंह से बचा जा सकता है। किंतु द्रुतगति से चलने की दशा में में संयम से भ्रष्ट हो जाऊँगा। इस प्रकार की स्थिति में संयम से पतित होने की अपेक्षा शरीरोत्सर्ग श्रेयस्कर है।" इस प्रकार निश्चय कर शिष्य की परिपाटी के अनुसार थोड़ी ही दूर पीछे खड़े शिष्य को-उस शिष्य को, जिसका कि स्वयं प्राचार्य ने साधुवेष उतार लिया था, पुनः साधुवेष प्रदान कर अनशन पूर्वक निष्कम्प पादपोपगमन प्रासन से प्राचार्य व अवस्थित हुए। वह शिष्य भी अपने प्राचार्य का अनुसरण करते हुए उनकी ही भांति अनशन कर पादपोपगमन आसन से निश्चल हो अवस्थित हो गया। गौतम ! वे दोनों अत्यन्त विशुद्ध अन्तःकरण से पञ्चमंगल के स्मरण में निमग्न हो गये। शुभ अध्यवसायों के परिणामस्वरूप उसी जन्म में मुक्ति पाने वाले केवली होकर उस सिंह के द्वारा मारे जाने पर
आठ प्रकार के कर्मों के मेल से पूर्णतः विप्रमुक्त होकर दोनों सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गये।"
"शेष ४६६ शिष्य अपने उस अपराधपूर्ण कर्म के दोष से जिस दुख को भोग रहे हैं, जो जो दुख भोग चुके हैं और भविष्य में अनन्त काल तक संसार में भटकते हुए जो दुख भोगेंगे, उन दुखों का अनन्त काल तक वर्णन करते रहने पर भी पूरी तरह बताने में कौन समर्थ है ? गौतम ! इस प्रकार उन ४६६ साधनों ने ऐसे गुण सम्पन्न अपने महान् गुरु की प्राज्ञा का अतिक्रमण कर संयम की आराधना नहीं की और उसके परिणामस्वरूप वे अनन्त संसारी बन गये।"
इस प्रकार तीर्थयात्रा के सम्बन्ध में आर्य वज्र के इस आख्यान से तीर्थ यात्रा की अपेक्षा संयम-आराधना को ही आत्म कल्याण का प्रमुख साधन बताया गया है । द्रव्य परम्पराओं के उत्कर्ष काल में सामूहिक तीर्थयात्राओं को एक अत्यन्त
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