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________________ समन्वय का एक ऐतिहासिक पर प्रसफल प्रयास 1 मन्त्र एवं विद्यासिद्धि की परिपाटी का विधान प्राचार्य श्री हरिभद्र ने अपने समकालीन श्री सिद्धसेन दिवाकर, वृद्धवादी जिनदासगरिण महत्तर, नेमिचन्द्र प्रभृति सात प्राचार्यों के परामर्श से विभिन्न इकाइयों में विभक्त जैनधर्म संघ में एकता एवं एकरूपता लाने की उत्कट अभिलाषा से चैत्यवन्दन के साथ-साथ मन्त्र जाप और विद्यासिद्धि को भी जैन धर्मावलम्बियों के दैनिक धार्मिक कर्त्तव्यों में समाविष्ट किया । इस सम्बन्ध से महानिशीथ का मूल पाठ इस प्रकार है : [ ३४५ १. तहासाहम्मिय जरणस्स गं जहासत्तीए परणावाद जाव णं सुमहग्घ मउय चोक्ख वत्थ पयारणाइणा वा महा सम्मारणो कायव्वो । २. एयावसरम्मि सुविइन समय सारेण गुरुणा पबंघेणं प्रक्लेव निक्खेवाइएहि पबंधेहि संसार निव्वेय जरगरिंग सद्धा संवेगुप्पायगं धम्म देसणं कायव्वं । ३. तो परम सद्धा संवेग परं नाऊरणं आजम्माभिग्गहं च दायव्वं जहा गं: ४. सहलीकय सुलद्ध मरगुए भवे । भो ! देवागुप्पिया । ५. तए अज्जप्पभिईए जावज्जीवं तिकालियं अरगुदिणं प्ररणुत्तावल एगग्ग चित्तेणं चेइए वंदेयव्वे | ७. ६. इणं चैव भो मरणुयत्ताश्रो असुइ प्रसासय खरण भंगुरानो सारं ति । तत्थ पुग्वह्णे ताव उदगपाणं न कायव्वं जाव चेइए साहूय न वंदिए । ८. तहा मज्झताव प्रसरण किरियं न कायव्वं जाव चेइए न वंदिए । ६. तहा प्रवर चैव तहा कायव्वं जहा प्रवंदिएहि चेइएहि नो संभा या इक्कमेज्जा । १०. एवं चाभिग्गह बंधं काऊणं जावज्जीवाए ताहे य गोयमा ! इमाए चैव विज्जाए हिमंतिया सत्तगंध मुट्ठीग्रो तस्सुत्तमंगे "निहारग पारगो भवेज्जासि ।" त्ति उच्चारमाणेणं गुरुणा घेतव्वान : ११. प्रोम् नमो भगवन भरहो । १२. सिज्झउ मे भगवती महाविज्जा । १३. वीरे महावीरे जयवीरे सेरणवीरे वद्धमारणवीरे जयंते अपराजिए स्वाहा । १४. उपचारो चउत्थ भत्तेणं साहिज्जइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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