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________________ [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ १२. एतेणं अद्रेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा ! ससुत्तत्योभय पञ्च मंगल थिर परिचियं काऊणं तमो इरियावहियं अज्झीए । (वही पृष्ठ ५३ पैरा ६) १. से भयवं कयराए विहीए तं इरियावहियं अहीए ? २. गोयमा ! जहा णं पञ्च मंगल महासुयक्खधं । ३. से भयवं इरियावहियं अहिज्जित्ताणं तो किं इहिज्जे ? ४. गोयमा ! सक्कत्थवाइयं चेइय वंदणविहाणं णवरं सक्कत्थयं एगत्थं बत्तीसाए आयंबलेहि...........अहिएत्ताणं...... (वही पृष्ठ ६३ पैरा २७) १. एवं सुतत्थोभयत्थग चिइ वंदणाविहाणं अहिज्जेताणं तो सुपत्थे सोहणे तिहिकरण..."ससिबले २. जहा सत्तीए जगगुरुणं संपाइय पूयोवयारेणं पडिलाहिय साहु वग्गेण य भत्तिब्भर निन्भरेणं रोमंच कंचु पुलइज्जमाण तनु सहरिस विसत्त वयणारविदेणं सद्धा संवेग विवेग परम वेरग्ग मूलं विरिणहिय धरण राग दोस मोहमिच्छत्त मल कलंकेण . ३. सुविसुद्ध सुरिणम्मल विमल शुभ सुभयराणुसमय समुल्लसंत सुपसत्थ अज्झवसाय गएणं भुवरणगुरु जिरिंणदपडिमा विणिवेसिय नयण मारण सेणं अरणन्न मारणसेगग्ग चित्तयाए य ४. "धन्नो हं पुण्णो हं" ति जिणवंदणाइ सहलीकयजम्मोत्ति इइ मन्न माणेणं विरइय कर कमलंजलिणा हरिय तण बीय जंतु विरहिय भूमीए निहियोभयजाणु णा सुपरिफुड सुविइय नीसंक जहत्थ सुत्तत्थोभयं पए-पए भावेमाणेणं ५. दढचरित्त समयण्ण, अप्पमायाइ अणेग गुण संपोववेएणं गुरुणा सद्धि साहु साहुणि साहम्मियप्रसेस बन्धु परिवग्ग परियरिएणं चेव पढमं चेइए वंदियब्वे ६. तयणंतरं च गुणड्ढे य साहुणो य । (वही पृष्ठ ६३ पैरा २८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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