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समन्वय का एक ऐतिहासिक पर असफल प्रयास 1
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की मणियों से जटित खचित अतीव सुन्दर परम नयनाभिराम स्थापत्यकला के उच्चतम विज्ञान के उदाहरणस्वरूप अनेक प्रकार के मनोहारी चित्रों से चित्रित भित्ती वाले अगणित शृगाटकों, घंटानों, ध्वजाओं से सुशोभित, अति सुन्दर तोरणों से युक्त, अति विशाल, अति विस्तीर्ण, पग-पग पर दर्शनीय प्रियदर्शी दृश्यों से संकुल, जलते हए अगर, कपूर, चन्दन आदि के धप से मगमगायमान, विचित्र वों के सभी जातीय पुष्पों से आच्छादित, अति मधुर सम्मोहक नाट्य नत्य वादिंत्र प्रादि की ध्वनियों से निरन्तर मुखरित, जिनेश्वरों की जीवन कथानों से चित्रित भित्तिचित्रों वाले, जहां जिनेश्वरों के जीवन वृत्तों पर निरन्तर रास, कथानक, कीर्तन आदि विविध वाद्य वृन्दों के अति सुन्दर ताल स्वरों पर चल रहे हों, इत्यादि अनेक गुणों से युक्त पग-पग पर सम्पूर्ण वसुन्धरा के शृंगारभूत, अपनी भुजाओं के बल से अजित पुण्य के प्रभाव से न्यायपूर्वक उपार्जित द्रव्य द्वारा क्रीत कंचन मरिणयों के सहस्रों सहस्र स्तम्भों पर आधारित और स्वर्ण निर्मित प्रांगन भित्ति एवं छत वाले जिनेश्वरों के मन्दिरों से यदि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण धरातल को प्राच्छादित कर दे, तो भी लव मात्र माचरित तप संयम इस प्रकार के उस विचित्र जिन मन्दिर-निर्माण कार्य की तुलना में अनन्त गुणा श्रेष्ठ है ।"
"क्योंकि तप और संयम कोटि-कोटि भवों में उपार्जित पाप कर्म लेप को धोकर स्वल्प काल में ही अनन्त-अनन्त सुखों के निधान मोक्ष धाम को प्रदान करता है। हे गौतम ! सम्पूर्ण वसुन्धरा के तल को जिनायतनों से मंडित करने और दानादि चतुष्क के देने के उपरान्त भी एक गृहस्थ अच्युत नामक स्वर्ग तक जा सकता है, उससे आगे नहीं। लव सत्तम देव विमानों के वासी देवता भी एक न एक दिन वहां से च्यवन करते हैं तो फिर संसार में और दूसरों की तो गणना ही क्या है। वस्तुतः इस संसार में शाश्वत है ही क्या ? उसे सुख कैसे कहा जा सकता है, जिसे अन्ततोगत्वा दुख प्रा घेरता है ? क्योंकि बहत लम्बे काल के पश्चात् भी जहां मृत्यु और अवसान के लिये अवकाश है, वह वस्तुतः तुच्छ ही है। अनादि भूत, अनन्त भविष्य और वर्तमान इन तीनों काल के समस्त देव देवेन्द्रों और नर नरेन्द्रों के सम्पूर्ण सुख को एक स्थान पर पिंडी भूत कर दिया जाय तो भी वह सारा सांसारिक सूख मोक्ष के एक समय (काल का सूक्ष्मातिसूक्ष्म परिमाण) मात्र के सुख के अनन्तवें भाग की भी तुलना नहीं कर सकता। गौतम ! संसार के बड़े से बड़े सर्वोत्कृष्ट सुख में भी हजारों प्रकार के दुःख, घोर अनुताप और
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