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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ३ कर चुका था और इसके विपरीत तैल तृतीय की शक्ति उसके सामन्तों की दुरभिसन्धि के परिणामस्वरूप क्षीण हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में अनुमकोण्डा पर माक्रमण करते ही प्रोल अपनी शक्तिशाली सेना के साथ तैल तृतीय को परास्त कर उसे रणांगण में ही बन्दी बना लिया। परन्तु प्रोल ने चालुक्य साम्राज्य के साथ अपने परम्परागत सम्बन्धों को दृष्टिगत रखते हुए तैल तृतीय को मुक्त कर उसे सकुशल उसकी राजधानी की ओर लौटने का समुचित प्रबन्ध कर दिया। प्रोल के पश्चात् उसके पुत्र रुद्र और तैल तृतीय के बीच शत्रुता चलती रही और रुद्र के आतंक से तैल तृतीय संग्रहणी रोग का रोगी बन ई० सन् १९६२ में पञ्चत्व को प्राप्त हुमा । तैल तृतीय की मृत्यु के पश्चात् बिज्जल विशाल साम्राज्य का स्वामी बन बैठा।
चालुक्य साम्राज्य के अवशेषों पर कलचूरी राज्य की स्थापना करते ही बिज्जल ने होयसल राज्यान्तर्गत वनवासी प्रदेश पर आक्रमण कर उस पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।'
बाम्बे गजट Vol. 1 Pt. II P. 474.
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