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________________ द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ] [ ३२५ सभी भांति की समचित व्यवस्था के लिए मन्दिर के नाम पर कृषि योग्य एक उपजाऊ भूखण्ड का दान किया ।' चालुक्य साम्राज्य वस्तुतः होयसल नरेश विष्णुवर्धन के बंकापुर में निवास करने के समय से ही लड़खड़ाना प्रारम्भ हो गया था। चालुक्य सम्राट तेल तृतीय (ई, ११४६-६३) के एक अशक्त एवं अयोग्य शासक होने के परिणामस्वरूप चालुक्य साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया। चालूक्यों के कलचरी सामन्त विज्जल के अन्तर्मन में, जो कि सैनिक सेवा के लिए उसके पूर्वजों को चालुक्यों द्वारा दी गई तारद वाडी की जागीर का उपयोग कर रहा था, तैल तृतीय की अयोग्यता अशक्तता को देखकर एक महात्वाकांक्षा का उदय हुप्रा । उसने तैल तृतीय की अयोग्यता का लाभ उठाकर शनै:-शनै: अपनी शक्ति को सुदृढ़ करना प्रारम्भ किया। कलचुरी सामन्त बिज्जल की ही भांति काकतीय सामन्तों ने भी चालुक्य साम्राज्य द्वारा, ई. सन १००० में उन्हें प्रदत्त सम्बी जिले और अनुप कोण्डा की अपनी पुरानी जागीर में निरन्तर विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया। कलचूरियों और काकतीय सामन्तों की भांति देवगिरि के याववों ने भी चालुक्य साम्राज्य के प्रति परम्परागत अपनी स्वामिभक्ति को तिलांजलि दे अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना के लिये अपनी शक्ति और सीमा का विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया। बिज्जल ने अपनी महत्वाकांक्षा की पूत्ति के लिये बड़ी दूरदर्शिता से काम लिया ! उसने तेल के समक्ष उसके विरुद्ध भीतर ही भीतर सुलगती हुई विद्रोह की प्राग का अतिरंजित चित्र प्रस्तुत करते हए विद्रोह को भड़काने से पहले ही कुचल डालने का उसे परामर्श दिया । तैल तृतीय ने बिज्जल को अपना अनन्य हितैषी समझ कर उसे सैन्य संचालन, कोषोपयोग आदि के अनेक उच्चाधिकार प्रदान किये। इन अधिकारों का उपयोग बिज्जल ने अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु शक्ति संचय में किया। इसका परिणाम यह हुआ कि तेल तृतीय नाम मात्र का सम्राट रह गया क्योंकि वस्तुतः साम्राज्य संचालन की सम्पूर्ण शक्ति बिज्जल ने ई. सन् ११५२ और श्री क्लीट के अभिमतानुसार ईस्वी सन् १९५६ में ही अपने में केन्द्रित करली थी। कटनीति का प्राश्रय लेकर बिज्जल ने तेल ततीय को काकतियों के विरुद्ध उकसा कर उससे काकतीय सामन्त प्रोल की राजधानी अनुमकोण्डा पर आक्रमण करवा दिया। प्रोल सतर्क था और पर्याप्त शक्ति संचय १ जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, लेख सं. ३२७ २ जम्बू खण्डी ताल्लुक के चिक्कलगी शिलालेख के अनुमार बिज्जल ने "महाभुज बन चक्र की उपाधि धारण कर ली थी । An report S. I. एपिग्राफी 938-39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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