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________________ ३२४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ नरसिंह देव के सेनापति चाविमय्य भी परम जिन भक्त था। अपने यौवन काल में यह सेनापति सम्पूर्ण दक्षिणा पथ में होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन के गरुड के नाम से विख्यात हुआ। इसने होयसल राज्य की समृद्धि के साथ-साथ जैन संघ की श्रीवृद्धि में भी उल्लेखनीय सहयोग दिया। सेनापति चाविमय्य की धर्मपत्नी जक्कव्वे ने हेरगू में एक विशाल जिन मन्दिर का निर्माण करवा कर वहाँ चेन्न पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी। जिनेश्वर की पूजा-अर्चा एवं ऋषियों के आहार आदि की व्यवस्था एवं भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर मन्दिर की मरम्मत के लिए जिक्कन्वे ने नरसिंह देव से प्रार्थना कर उनसे भूमि प्राप्त की और उस भूमि का दान ई. सन् ११५५ के लगभग मन्दिर को किया।' नरसिंह देव के एक अन्य दण्डनायक शान्तियण ने अपने पिता पारिसरण की स्मृति में एक वसदि का निर्माण करवाकर मल्लिषेण पण्डित को कृषि भूमि का दान किया। होयसल राजवंश के शासनकाल में सर्व धर्म समभाव का भी एक उदाहरण ई. सन् १९५० के कैदाल के एक शिलालेख से प्रकाश में आया है। मान्य खेटपुर के अधीश्वर गलिवाचि ने—जो कि होयसल नरेश विष्णुवर्धन का और उसके पुत्र नरसिंह देव का भी अधीनस्थ सामन्त था, करदाल (कैदाल) में एक जिनेश्वर मन्दिर, एक गंगेश्वर मन्दिर (शिव मन्दिर), एक नारायण मन्दिर और एक चल वरिवेश्वर मन्दिर-इस प्रकार चारों धर्मों के चार मन्दिरों का निर्माण करवाकर सब धर्मों के प्रति अपना समभाव दर्शाया। इस मान्य खेटपुराधीश्वर की रानी भीमले परम जिन भक्त और जैन धर्म की प्रमुख उपासिका थी। अपनी जैन धर्मावलम्बिनी रानी के नाम पर राजा गलिवाचि ने मोम जिनालय नामक वसदि और भीम समुद्र नामक एक सुन्दर सरोवर का निर्माण करवाया। मान्य खेट पति राजा गलिवाचि ने इस जिनालय की पूजा-अर्चा एवं मुनियों के लिए आहार आदि की व्यवस्था हेतु भूमि का दान किया। होयसल नरेश नरसिंह के मन, मस्तिष्क पर वंश परम्परागत जैन संस्कृति के संस्कारों की अमिट छाप उसके बाल्यकाल से ही अंकित हो चुकी थी, यह गुगली से प्राप्त एक शिलालेख से विदित होता है । इस शिलालेख में उल्लेख है कि शक सं. १०६६ (तदनुसार ई, सन् ११४७) में जिस समय कि होयसल नरेश विष्णुवर्धन का शासनकाल था, कुमार नरसिंह देव ने गुगुलि अग्रधार के “गोविन्द जिनालय" की . २ 3 जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३, लेख सं. ३३६ जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, लेख सं. ३४७ पृ० ११० से ११७ जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, लेख सं. ३३३ पृ० ८५ से १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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