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द्रव्य परम्परामों के सहयोगी राजवंश ]
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राजते राजसिंहीव, पार्वे विष्णु मही भृतः । विख्यात्या शान्तलाख्या सा, जिनागारमकारयत् ॥३॥'
लेख संख्या ५३ (१४३) शक सम्वत् १०५० के उल्लेखानुसार शान्तल देवी की माता (माचिकव्वे) के पितामह दण्डनायक नागवर्म, माता की दादी चन्दिकव्वे, माता के पिता बलदेव, माता की माता माचिकव्वे तथा उसके मामा मारसिंगय (शान्तल के पिता और मामा दोनों समान नाम वाले थे).-यह समस्त परिवार परम जिन भक्त एवं परम्परागत प्रगाढ़ श्रद्धानिष्ठ जैन धर्मावलम्बी परिवार था।
__इस लेख के श्लोक संख्या २८ से ३२ में नाग वर्म दण्डनायक की, श्लोक संख्या २६ में बलदेव दण्डनायक की तथा श्लोक संख्या ३६ व ३७ में शान्तल. देवी के मामा मारसिंगय की जिनपति भक्त, मुनि चरणाम्बुजातयुगभृग, जिनधर्माम्बर तिरमरोचि आदि एवं अन्य प्रशस्त विशेषणों से प्रशंसा की गई है।
श्लोक संख्या १८ में शान्तल देवी के पिता, जिनका नाम भी मारसिंगय था, के लिये हरपादाम्बुज भक्ति योलु विशेषण प्रयुक्त किया गया है। इससे निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि शान्तल देवी के पिता मारसिंगेय शैव धर्मावलम्बी थे। शान्तल देवी ने शक सं. १०५० (तदनुसार ई. सन् ११२८) की चैत्र शुक्ला ५ सोमवार के दिन शिव गांगेय तीर्थ में समाधि पूर्वक पण्डित मरण का वरण कर स्वर्गारोहण किया।
शान्तल देवी के समाधि मरण के पश्चात् उसके माता-पिता का निधन हुआ। इसकी माता माचिकव्वे ने अपने गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्त देव, वर्धमान देव और रविचन्द्र देव की साक्षी से सन्यास (संथारा पंडित मरण) अंगीकार कर एक मास के अनशन के पश्चात् मृत्यु का वरण किया । शान्तल देवी के मातुल ने भी श्रवण वेल्गोल में समाधि पूर्वक पण्डित मरण का वरण किया और उसकी पत्नी और भावज ने शक संवत् १०४१ की कार्तिक शुक्ला १२ के दिन उसके समाधिस्थल पर निषद्या का निर्माण करवाया।
होय्सल नरेश विष्णुवर्द्धन की पुत्री हरियम्बरसी भी जीवनभर परम जिनोपासिका रही । कर्णाटक प्रान्त में केवल वैष्णव विद्वानों के ही नहीं अपितु रामानुज
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जैन शिलालेख संग्रह भाग १, लेख सं. ६२ (१३१) पृ० १४६-१४७ जैन शिलालेख संग्रह भाग १, पृ० सं. ८८ से १०० जैन शिलालेख संग्रह भाग १, लेख सं. ५३, पृ० ६३ जैन शिलालेख संग्रह भाग १, लेख सं. ५३, पृ०६५ जैन शिलालेख संग्रह भाग १, लेख सं. ५२, पृ० ८७
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